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________________ सकता है, क्योंकि इसमें तुम खड़े हो । परमात्मा तो दूर की बातचीत है; हो न हो, दुख है। तो महावीर इसकी भी चिंता नहीं करते, सृष्टि कब बनी; इसकी भी चिंता नहीं करते, किसने बनायी। इन दूर की बातों में जाने से फायदा क्या है ? ऐसा तो नहीं है कहीं कि तुम दूर की बातें कर के पास की असलियत को भुलाना चाहते हो? ऐसा तो नहीं है कि सृष्टि किसने बनायी, कौन है बनानेवाला, क्यों बनायी — इस तरह के बड़े-बड़े सवाल उठाकर जिंदगी के असली सवालों को तुम छिपा और ढांक लेना चाहते हो ? कहीं ऐसा तो नहीं है कि ये सब सांत्वना के उपाय हैं, ताकि दुख दिखाई न पड़े; ताकि दुख चुभे न, छिदे न, ताकि दुख की पीड़ा न हो। कहीं तुम्हारे मंदिर-मस्जिद, पूजागृह तुम्हारी सांत्वनाओं का जाल तो नहीं ? महावीर ऐसा ही जानते हैं। यह सब तुम्हारी सांत्वना का जाल है । इसलिए महावीर मित्र भी मालूम नहीं होते। इसलिए तो महावीर बहुत अनुयायी इकट्ठे न कर पाये। सुख की चर्चा की होती, दुखी लोग आ गये होते। उन्होंने दुख की चर्चा की, दुखियों ने सोचा, 'हम वैसे ही दुखी हैं, बख्शो !' दुखियों ने कहा, 'हम वैसे ही दुखी हैं, तुम्हारे पास आकर और दुख की ही चर्चा, और दुख की ही चर्चा...! ऐसे ही क्या दुख कम हैं, जो अब तुम और चर्चा करके जोड़े जा रहे हो? हमें थोड़ी सांत्वना दो, भरोसा दो, आश्वासन दो, आशा दो। कहो हमें कि आज सब गलत है, कल सब ठीक हो जायेगा। कहो कि यह संसार तो माया है।' महावीर ने नहीं कहा कि यह संसार माया है; क्योंकि महावीर | ने कहा कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि तुम दुख को माया कहकर भुलाना चाहते हो ! जिस चीज को भी माया कह दो, उसे भुलाने में सुविधा हो जाती है। संसार माया है, तो दुख भी माया है, तो बीमारी भी माया है, तो झेल लो, भोग लो, कुछ असलियत तो इसमें है नहीं, असली चीज तो परमात्मा है। महावीर ने संसार को बड़ा सत्य माना है; परमात्मा की बात ही नहीं की। जो सत्यों का सत्य है, उसकी तो बात नहीं की; और इस भ्रामक संसार को बड़ा सत्य माना है। क्योंकि महावीर कहते हैं कि तुम्हारे मन को मैं पहचानता हूं। तुम्हारे परमात्मा, तुम्हारे मोक्ष, सब मलहम पट्टियां हैं; उनसे तुम घाव को छिपाते हो । और यह घाव कुछ ऐसा है, इसकी शल्य चिकित्सा होनी Jain Education International परम औषधि : साक्षी-भाव | चाहिए, सर्जरी होनी चाहिए। तो तुम सर्जन के पास जाओगे तो वह दबायेगा भी तुम्हारा घाव, तो तुम चीखोगे भी, मवाद भी निकालेगा तो तुम यह थोड़ी कहोगे कि दुश्मन हो, कि हम वैसे ही तो दुख में भरे थे, तुमने और मवाद निकाल दी; हम वैसे ही तो तड़फ रहे थे, तुमने यह और क्या किया; ऐसे ही क्या दुख कम था कि तुम छुरी- कांटे लेकर खड़े हो गये हो ! नहीं, तुम जानते हो, सर्जन मित्र है। वह उस गलत अंग को काटकर अलग कर देगा, जहां से विष तुम्हारे पूरे जीवन-संस्थान में फैला जा रहा है। महावीर एक सर्जन हैं; दार्शनिक कम, तत्वचिंतक कम, चिकित्सक ज्यादा हैं। इस शब्द को खयाल में रखो : चिकित्सक। नानक ने अपने को वैद्य कहा है। बुद्ध ने भी अपने को वैद्य कहा है। महावीर भी वैद्य हैं। ये तुम्हें लोरियां सुनाने में उत्सुक नहीं हैं, कि तुम्हें थोड़ी झपकी लग जाये; तुम रातभर जागे हो, जन्म-जन्म जागे हो, थोड़ा सो लो। नहीं, इनकी उत्सुकता तुम्हें सुलाने में नहीं है, क्योंकि सोने के कारण ही तो तुम्हारे जीवन की सारी पीड़ा और जाल और प्रवंचना का फैलाव है। इसलिए महावीर तुम्हारे दुख से भरी रग को छुएंगे, घबड़ाना मत। दुखवादी नहीं हैं वे । लेकिन तुम दुख में हो। और तुम धीरे-धीरे अपने को इस तरह की भ्रांतियों में डाल लिये हो कि तुम दुख को दुख नहीं मानते; तुम उसे सुख मानने लगे हो – तो तुम्हें बार-बार जगाना पड़ेगा कि दुख दुख है, सुख नहीं। जिस दिन तुम्हारा सारा जीवन लपटों से भर जायेगा - भरा तो है ही, दिखाई पड़ जायेगा जिस दिन; जिस दिन तुम देखोगे कि यहां कुछ भी तो नहीं है, कीड़े-मकोड़े हैं, घाव, मवाद, पीड़ा ही पीड़ा - उसी दिन छलांग लगाकर इस घर के बाहर हो जाओगे । हां, बाहर खुला आकाश है; सूरज का प्रकाश है; खिले' फूल हैं, पक्षियों के गीत हैं; बाहर बड़ी वातास है, बड़ी मधुरिमा है, बड़ा सौंदर्य है! लेकिन वह तो तुम बाहर आओगे, तो ही सुनाई पड़ेगा। वह तो तुम बाहर आओगे, तो ही दिखाई पड़ेगा। इसलिए बाहर की कोई बात नहीं। जहां तुम हो, उसकी बात है। बड़ी व्यवहारिक बात है। बुद्ध के जीवन में एक उल्लेख है...। और बुद्ध और महावीर इस संबंध में एक ही दृष्टिकोण के हैं। दोनों श्रमण-संस्कृति के आधार हैं।... कहते हैं बुद्ध को जब परमज्ञान हुआ, तो शैतान For Private & Personal Use Only 93 www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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