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________________ ५६० गो० जीवकाण्डे ज १। ४१ १५ । ११२। ५६ अपत्तितप्रक्षेपकप्रक्षेपक ज १६ ८१ ११२। ५६ इल्लि एकरूपं धनम बेरिरिसुवुदु ज १ शेषमनु ज १६ । ८० अपत्तिसलु ज १५ इदं प्रक्षेपकदोळु ज ४१ ११२। ५६ ११२। ५६ कूडिदोडे ज ५६ अपत्तितंजघन्यमक्कुमदनुपरितनजघन्यदोळ्कूडिदडे लब्ध्यक्षां द्विगुणमक्कु ज २। ११२। ५६ मुन्निरिसिद धनदोळु ज १ इदं नोडलु संख्यातगुणहोनमप्प ऋणमं ज । ४१ १५। ११२ । ५६ ५ किंचिदूनमं माडि शेषमं ज १ - द्विगुणजघन्यदोळु कूडिदोडे साधिकमक्कुव ज २ सत्तदसमं ११२। ५६ अत्रतनं ऋणं अपनीय पृथक् संस्थाप्य ज १ ४१ । शेषं अपवर्त्य ज १६ ८१ । एकरूपं धनं पृथग्धृत्य १५ ११२ ५६ ११२ ५६ अपवयं ज १५ प्रक्षेपके निक्षिप्य ज ५६ अपवर्तिते जघन्यं भवति । ११२ ५६ शेषं ज १६ ८० ११२ ५६ ५६ ज। अस्मिन् पुनः उपरितनजघन्ये युते सति लब्ध्यक्षरं द्विगुणं भवति । ज २। इदमेव पृथक्स्थापितधनेन ज १ इतः संख्यातगुणहीनऋणेन ज १ ४१ किंचिदूनीकृतेन ज १- साधिकं कुर्यात ज २। १५ ११२ ५६ ११२ ५६ . १० गुणा उत्कृष्ट संख्यातका गुणाकार तथा छप्पन, दो, छप्पन एकका भागहार होता है। यहाँ एक हीन सम्बन्धी ऋण साधिक जघन्यको इकतालीसका गणाकार और उत्कृष्ट संख्यात, एक सौ बारह और छप्पनका भागहार मात्र है-यथा जं १४४१ । सो इसको अलग रखकर १५ । ११२ । ५६ शेषमें दो बार उत्कृष्ट संख्यातका अपवर्तन करनेपर साधिक जघन्यको सोलह सौ इक्क्यासीका गुणाकार और एकसौ बारह गुणा छप्पनका भागहार होता है; यथा ज १६८१ । यहाँ ११२४५६ २५ गुणाकारमें इकतालीस-इकतालीस थे, उन्हें परस्परमें गुणा करनेपर सोलह सौ इक्यासी हुए और भागहारमें छप्पनको दोसे गुणा करनेपर एकसौ बारह हुए तथा दूसरे छप्पनको एकसे गुणा करने पर छप्पन हुए । गुणाकारमें एक अलग रखा, उसका धन साधिक जघन्यको एकसौ बारह गुणा छप्पनका भागहार मात्र होता है। शेष रहे साधिक जघन्यको सोलहसौ अस्सीका गुणाकार और एकसौ बारह गुणा छप्पनका भागहार । यथा एक ऋणका धन ३० ज १ शेष। ज १६८० । इसमें एकसौ बारहसे अपवर्तन करनेपर साधिक जघन्यको ११२४५६ ११२४५६ पन्द्रहका गुणाकार और छप्पनका भागहार रहा-ज। इसमें प्रक्षेपकका प्रमाण जघन्यको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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