SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 332
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८१८ गो० जीवकाण्डे ववहारो पुण कालो पोग्गलदव्वादणंतगुणमेत्तो । तत्तो अणंतगुणिदा आगासपदेसपरिसंखा ॥५९०॥ व्यवहारः पुनः कालः पुद्गलद्रव्यादनंतगुणमात्रः। ततोऽनंतगुणिताः आकाशप्रदेशपरिसंख्याः ॥ ५ व्यवहारकालमें बुदु मते पुद्गलद्रव्यमं नोडलुमनंतगुणमात्रमक्कुमदं नोडलुमनंतगुणंगळाकाशद्रव्यद प्रदेशपरिसंख्यगर्छ । लोगागासपदेसा धम्माधम्मेगजीवगपदेसा । सरिसा हु पदेसो पुण परमाणु अवट्ठिदं खेत्तं ॥५९१॥ लोकाकाशप्रदेशाः धमाधम्मकजीवप्रदेशाः सदृशाः खलु प्रदेशः पुनः परमाण्ववस्थितं १० क्षेत्र॥ लोकाकाशप्रदेशंगळं धर्मद्रव्यप्रदेशंगळुमधर्मद्रव्यप्रदेशंगळुमेकजीवप्रदेशंगळू सदृशंगळप्पुवु खलु स्फुटमागि। ई नाल्क द्रव्यंगळ प्रदेशंगळु प्रत्येकं जगच्छ्रेणीघनप्रमितंगळप्पुषु । प्रदेशमें बुदनितु प्रमाणमें दोर्ड पुनः मते पुद्गलपरमाण्ववष्टब्ध क्षेत्रेमिनिते प्रमाणमक्कुमदुकारणदिदं जघन्यक्षेत्रमं जघन्यद्रव्यमुमविभागिगेळप्पुवु । संदृष्टि :| जीव पुद्गल घ. अ. लो= मुका | व्य-का | अलोकाकाश । = १६ ख ख । १६ ख ख ख = | ख ख ख ३ ख ख ख ख १६ १६ ख । १ क्षे खख ख का अ-ख अख ख कककक अख ख ख अख ख ख ख YN के १ "ख ख ख ख ख ख ख a ख ख १५ व्यवहारकालः पुनः पुद्गलद्रव्यादनन्तगुणः । ततोऽनन्तगुणिता आकाशप्रदेशपरिसंख्या ॥५९०॥ लोकाकाशप्रदेशा धर्मद्रव्यप्रदेशा अधर्मद्रव्यप्रदेशा एकैकजीवद्रव्यप्रदेशाश्च सदशाः खल संख्यया समाना एव प्रत्येकं जगच्छ्रेणिघनमात्रत्वात् । प्रदेशप्रमाणं पुनः पुद्गलपरमाण्ववष्टब्धक्षेत्रमात्रं भवति । तेन जघन्यक्षेत्रं व्यवहारकाल पुद्गल द्रव्यसे अनन्तगुणा है। और उससे अनन्तगुणी आकाशके प्रदेशोंकी संख्या है ॥५९०॥ . लोकाकाशके प्रदेश, धर्मद्रव्यके प्रदेश, अधर्मद्रव्यके प्रदेश और एक-एक जीवद्रव्यके २० प्रदेश संख्याकी दृष्टिसे समान ही हैं, क्योंकि प्रत्येकके प्रदेश जगत्त्रेणिके घन प्रमाण हैं। पुद्गलका परमाणु जितने क्षेत्रको रोकता है,उतना ही प्रदेशका प्रमाण है। अतः जघन्यक्षेत्र अर्थात् प्रदेश और जघन्यद्रव्य परमाणु अविभागी हैं, उनका विभाग नहीं हो सकता । अब १. म क्षेत्रमेनितनिते । २. म°गियप्पुवु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy