SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४४ गो० जीवकाण्डे जीवंगळं तेगेयल्वेडि पल्यासंख्यातदिदं भागिसि एकभागमं कळेवु बहुभागं मारणांतिक समुद्घात १० पप ० aa सहितजीवंगळप्पुवु । ४।६५ = | ८१ १० | ११ प प मत्तंवरोळु समीपमारणांतिकसमुद्धात जीवंगळं कळेल्वेडि पल्यासंख्यातदिदं भागिसि बहुभागमं कळंदु शेषैकभागं दूरमारणांतिकसमुद्धात - aa प ० जीवंगळप्पु ४/६५ = | ८१ । १० । २११ a ५ हूर्तदो संभविसुव फलराशियं साडि एकसमयमं प्रमाणराशियं माडि प्र स १ । फ 1 6 प शेषबहुभागो विग्रहगतिजीवराशिर्भवति = इ २१ बंद लब्धं 'समस्तमारणांतिक समुद्घात जीवंगळ ४६५८१| १० | ११२ प a प a a ४ । ६५ प १ a ई राशियं मारणांतिकसमुद्घात कालांत प पप a a a शुद्धशलाकेगळनिच्छाराशियं माडि मारणांतिकसमुद्घातजी वंगळं प Jain Education International a ० = ८१ । १०३ १ १ प प a a ? प प प १ ० ४१६५१ = ८ १।१०१११ प प प aaa = შ ० ४ । ६५ = ८१ । १० । ३११ प a द्वातरहितानपनेतु पल्यासंख्यातेन भक्त्वकभागं त्यत्क्वा शेषबहुभागो मारणान्तिकसमुद्घातजीवराशिर्भवति - 2 अत्र समीपमारणान्तिकसमुद्घातजीवानपनेतुं पत्या संख्यातेन भक्त्वा For Private & Personal Use Only प a प a ११३१ प a अत्र मारणान्तिकसमु संख्यात वर्ष - - दस हजार वर्षकी स्थिति के समयोंकी संख्यासे भाग देनेपर जितना प्रमाण आवे, उतने जीव एक समय में मरते हैं । इन मरनेवाले जीवोंकी संख्या में पल्यके असंख्यातवें भागसे भाग देनेपर एक भाग प्रमाण जीवोंकी ऋजुगति होती है और शेष बहुभाग प्रमाण जीव विग्रह गतिवाले होते हैं । विग्रहगतिवाले जीवोंके प्रमाणमें पल्यके असंख्यातवें भागसे १५ भाग दें। एक भाग प्रमाण जीवोंके मारणान्तिक नहीं होता, बहुभाग प्रमाण जीवोंके मारणान्तिक समुद्घात होता है। मारणान्तिक समुद्घातवाले जीवोंके प्रमाण में पल्यके असंख्यातवें भागसे भाग दें । बहुभाग प्रमाण समीप क्षेत्रमें मारणान्तिक समुद्घात करने१. म. सर्वमा । www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy