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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्वप्रदीपिका भी स्वस्थान | वेदना- | कषाय वैक्रियिक मारणांति तेज आके उपपाद सामान्यलोक= स्वस्थान र समुद्घात समुद्घात समुद्घात समुद्घात =१३-४४६७ = १३-४ -१३-४ -६पा६७ = १३ १३-= अधोलोक=४ ३-५ | ४५५ ३-५५३-५५५ ३-५५५५ ३-७ ० ० ० ३-२७७ =१३-४/७४।६७ =१३-४ = १३-४-६पा६७ =३- १३-= ऊर्ध्वलोक-३ . - ३ ५। ३४५५ ३।५।५ । ३-५५५/०५५५५ ३७ सामा =१३-४ = ४।६७ = १३-४ -१३-४-६५।६७ = १३ ००० ३२७७ तिर्यग्लोक-१७ १३-= मनुष्यलोक ३२७७ ३-५ ३४५५ ३५५ ३-५५५ ३५५५५ ३ ७ मत्तं सामान्यलोकमं अधोलोकमुमनूवलोकमुमं तिर्यग्लोकमुमं मनुष्यलोकमुमं संस्थापिसि. बळिक माळापं माडल्पडुगुमते दोडे स्वस्थानस्वस्थान - वेदनाकषाय - मारणांतिकोपपादंगळेब पंचपदंगळोळु कृष्णलेश्याजीवंगळु कियतक्षेत्रदोलिरुत्तविपु दोडुत्तरं कुडल्पडुगुं सर्वलोकदोळिरुत्तिप्पुवु विहारवत्स्वस्थानदोळु कृष्णलेश्याजोवंगळु कियत्क्षेत्रदोलिरुत्तिर्युवेदोडुत्तरं पेडल्पडुगुं सामान्यदि मूरुं लोकंगळ असंख्यातेकभागदोळं तिर्यग्लोकद संख्येयभागदोळे मिरुत्ति'वेक दोडे एकलक्षयोजनोत्सेधमं नोडलेकजीवशरीरोत्सेधक्क संख्यातगुणहीनत्वदिदं मनुष्यलोकमं नोडलुम- , संख्यातगुणक्षेत्रदोलिरुतिप्पुवु । वैक्रियिकपददोळु कृष्णलेश्यय जीवंगळु एनितु क्षेत्रंगळोलिरुतिप्प्वेदोड सामान्यदि नाल्कु लोकंगळऽसंख्यातैकभागदोळं मनुष्यलोकमं नोडलुमसंख्यातगुणक्षेत्रदोळि तद्यथा-कृष्णलेश्याजीवाः स्वस्थानस्वस्थानवेदनाकषायमारणान्तिकोपपादपदेष कियत्क्षेने तिष्ठन्ति ? सर्वलोके तिष्ठन्ति । विहारवत्स्वस्थानपदे पुनः सामान्यादिलोकत्रयस्यासंख्यातैकभागे तिर्यग्लोकस्य लक्षयोजनोत्सेधादेकजीवशरीरोत्सेधस्य संख्यातगुणहीनत्वात् संख्यातकभागे मनुष्यलोकादसंख्यातगुणे च क्षेत्रे तिष्ठन्ति । वैक्रियिकसमुद्घातपदे च सामान्यादिचतुर्लोकानामसंख्यातैकभागे मनुष्यलोकादसंख्यातगुणे च क्षेत्रे तिष्ठन्ति । १५ पुनः सामान्य लोक, अधोलोक, ऊर्ध्वलोक, तिर्यक्लोफ और मनुष्यलोक इन पांचकी स्थापना करके कथन करते हैं-कृष्णलेश्यावाले जीव स्वस्थानस्वस्थान, वेदना, कषाय, मारणान्तिक और उपपाद स्थानों में कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? सर्वलोकमें रहते हैं। किन्तु विहारवत्स्वस्थानमें सामान्यलोक, अधोलोक, ऊर्ध्वलोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं। तिर्यक्लोक एक लाख योजन ऊँचा होनेसे तथा एक जीवके शरीरकी ऊँचाई उससे संख्यात- ' गुणा हीन होनेसे तिर्यक्लोकके संख्यातवें भागमें रहते हैं। तथा मनुष्यलोकसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं। वैक्रियिक समुद्घात स्थानमें जीव सामान्य आदि चार लोकोंके असंख्यातवें १. म दोलिप्प्वेकेंदोडे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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