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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
७१५ सल्पडुवुटु । यावदष्टमापकर्षमन्नेवरं त्रिभागावशेषमागुत्तिरलायुष्यमं कट्टुवर देबेकांतमिल्लो दुटु आ आ एडेयोळु परभवायुबंधप्रायोग्यरप्परेंदु पेळल्पटुदक्कुं। निरुपक्रमायुष्यरुगळनपत्तितायुष्यरु मत्त देवनारकरु भुज्यमानायुष्यं षण्मासावशेषमागुत्तिरलु परभवायुबंधप्रायोग्यरप्परुमल्लियुमष्टापकषगळप्वुपु । समयाधिकपूर्वकोटियं मोदल्माडि त्रिपलितोपमायुष्यपय्यंतमादसंख्यातासंख्यातवर्षायुष्यरुगळप्प तिर्यग्मनुष्यभोगभूमिजरुगळं निरुपक्रमायुष्यरेंदु कैकोळूवुदु।
इल्लि अष्टापकर्षमं माडि परभवायुबंधमं माळ्प जीवंगळु सर्वतः स्तोकंगळु अवं नोडछु सप्ताकपंगाळदमायुबंधमंमाळ्प जीवंगळु संख्यातगुणंगळवं नोडलु षडपकर्षब्दिमायुबंधमं माळप जीवंगळु संख्यातगुणंगळवं नोडलु पंचापकर्षगळिंदमायुब्बंधमं माळप जीवंगळु सख्यातगुणंगळवं नोडलु चतुरपकर्षळिदमायुबंधमं माम्प जीवंगळु संख्यातगुणंगळवं नोडलु त्र्यपकषंगाळदमायुब्बधर्म माळप जीवंगळु संख्यातरुणंगळवं नोडलु द्वयपकर्षर्गाळदमायुबंधमं माळ्प जीवंगळु संख्यात- १० गुणंगळु अवं नोडलेकापकर्षदिदमायुबंधमं माळ्प जीवंगळु संख्यातगुणंगळप्पुववक्क संदृष्टिरचने । १३-१-११६-१-११३-१-११३-१-११३-१-११३-१-१ १३-१-१ | १३-१-१ /
! ११ । ११११११११११११११११११११११११११११११११२)
भवन्ति । एवमष्टमापकर्षपर्यन्तं ज्ञातव्यं । 'त्रिभागत्रिभागावशेषे सत्यायुर्बध्नन्ति एव इत्येकान्तो नास्ति तत्र तत्र परभवायुर्बन्धं प्रायोग्या भवन्तीति कथितं भवति । निरुपक्रमायुष्काः अनपवर्तितायुष्का देवनारका भुज्यमानायुषि षड्मासावशेषे सति परभवायुबन्धप्रायोग्या भवन्ति । अत्राप्यष्टापकर्षाः स्युः। समयाधिकपूर्वकोटिप्रभृतित्रिपल्योपमपर्यन्तं संख्यातासंख्यातवर्षायुष्कभोगभूमितिर्यग्मनुष्या अपि निरुपक्रमायुष्का इति ग्राह्यम् । अत्र च अष्टापकः परभवायुर्बन्धं कुर्वाणा जीवाः सर्वतः स्तोकाः, ततः सप्तापकर्षेः कुर्वाणाः संख्यातगुणाः । ततः विभागके शेष रहनेपर आयुबन्ध करते ही हैं। ऐसा एकान्त नहीं है। हाँ, त्रिभागोंमें आयुबन्धके योग्य होते हैं। निरुपक्रम आयुवाले देव और नारकी भुज्यमान आयुमें छह मास शेप रहनेपर परभवकी आयुबन्धके योग्य होते हैं। यहाँ भी छह महीने में त्रिभाग करके आठ अपकर्ष होते हैं । उनमें ही आयुबन्ध होता है। एक समय अधिक एक पूर्व कोटिसे १० लेकर तीन पल्य पर्यन्त संख्यात और असंख्यात वर्षकी आयवाले भोगभमिया. तियेच मनुष्य भी निरुपक्रम आयुवाले होते हैं। इनके आयुका नौ भास शेष रहनेपर आठ अपकर्षके द्वारा परभवके आयुका बन्ध होने के योग्य है। इतना ध्यानमें रखना चाहिए कि जिस गतिसम्बन्धी आयुका बन्ध प्रथम अपकर्ष में होता है, पीछे यदि द्वितीयादि अपकर्षोंमें आयुका बन्ध होता है, तो उसी गतिसम्बन्धी आयुका बन्ध होता है। यदि प्रथम अपकर्षमें आयुका , बन्ध नहीं होता, तो दूसरे अपकर्षमें जिस-किसी आयुका बन्ध होता है, तीसरे अपकर्षमें यदि । बन्ध हो,तो उसी आयुका बन्ध होता है। इस प्रकार कितने ही जीवोंके आयुका बन्ध एक ही अपकर्षमें होता है, कितनोंके दो, तीन, चार, पाँच, छह, सात या आठ अपकर्षों में होता है। यहाँ आठ अपकर्षों के द्वारा परभवकी आयुका बन्ध करनेवाले जीव सनसे थोड़े होते १. ब. त्रिभागावशेषे ।
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