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________________ I a ७a ७ al ७a ६४० गो० जीवकाण्डे डकदोळे जघन्यकालमिदु ८ तत्कांडकोत्कृष्टकालमिदु ८ आदियनंतदोळकळे दोडे शेषं तत्कांडकदोळु जघन्यकालद मेले पेच्चिद समयंगळ प्रमाणमप्पुदु ८०१ ई कालविशेषदिवं क्षेत्रविशेषमं भागिसुवुदेके दोर्ड जघन्यकालद मेले इनितु समयंगळु पेच्चिदागळा जघन्यक्षेत्रद मेलेनितु प्रदेशंगळु पेच्चिद वो दु समयं पेच्चिदागळेनितु प्रदेशंगळु पर्चुगुम दितु त्रैराशिकं माडि प्र काल ८०१ ५ फलप्रदेश ६०७ इच्छाकालसमय १ लब्धक्षेत्रप्रदेशंगळु ६ इंतावलिभक्तघनांगुलप्रमितक्षेत्र विकल्पंगळु ध्र वरूपदिदं नडेदु नडेदों दोंदु समयवृद्धियागुत्तं पोगि प्रथमकांडकचरमविकल्पोळु जघन्यकालद मेले पेच्चिद समयंगळिनितप्पुवु ८०७ इवं तज्जघन्यकालदोळु कूडुवागळु समच्छेदं माडि ८७ आवळिगावळियं तोरि संख्यातरूपुगळं कूडिदोडिदु ८३ अत्रत्यासंख्यात१० भाज्यभागहारंगळं सरिगळिद शेषं संख्यातभक्तावलिप्रमितमक्कु ८ मत्तमोंदु समयवृद्धि यादागळु क्षेत्रदोळु आवलिभक्तघनांगुलप्रमितप्रदेशंगळु क्षेत्रदोळु पेच्चुत्तं विरलागळिनितु समयंगळु पेच्चिदल्लिगेनितु प्रदेशंगळ क्षेत्रदोलु पेन्र्चुवर्वेदितु त्रैराशिकमं माडि प्र= का स १।फ। प्रदेश ६ इ=का स ८०-७ लब्धक्षेत्रप्रदेशंगळु ६०-७ इवं जघन्यक्षेत्रदोळ कूडवागळु संख्यातरूपुळिदं समच्छेदं माडि ६७ घनांगुलक्क घनांगुलमं तोरि संख्यातरूपुगळं कूडिदोडिदु ६० अत्रत्यासंख्यातभाज्यभागहारंगळनपत्तिसिद शेषं संख्यातभक्त घनांगुलप्रमितं चरमक्षेत्रविकल्पमक्कुं ६ . इन्तु ध्र वरूपवृद्धि विवयि सर्वकांडकदोळं परिपाटिक्रमवरियल्पडुगुमिन्नु ध्रुववृद्धिविवयिद तत्प्रथमकांडकदोळु असंख्य संख्यं भागं असंख्यवारं तु घनांगुलासंख्यातेकभागमात्रक्षेत्र प्रदेशंगळु जघन्यक्षेत्रद मेले पेच्चिदागळो दोंदु समयं जघन्यकालद मेले पर्चगुमंत घनांगुलासंख्यातैकभागमात्रक्षेत्रप्रदेशंगळु पच्चिदागळोदुं समयं केळगण कालदमेले पेढुंगुमितु ध्रु वाध्र ववृद्धिगळु क्षेत्रदोळु तद्योग्यासंख्यातवारंगळागुत्तं विरलु कालदोळ मुंपेन्दिनितु समयंगळु ८ -७ a ७ ७a प्रथमकाण्डकचरमविकल्पपर्यन्तं असंख्यातवारं भवति । तु-पुनः, तत्रैव काण्डके अध्र ववृद्धिविवक्षायां तद्वृद्धिप्रमाणं घनामुलस्यासंख्यातकभागमात्र संख्यातकभागमात्रं च स्यात् सापि तच्चरमपर्यन्तमसंख्यातवारं भवति ॥४०१॥ तेन उक्त ववृद्धिप्रमाणेन अध्रुववृद्धिप्रमाणेन वा जघन्यदेशावधिविषयक्षेत्रस्योपरि क्षेत्र वर्धिते एक-एक प्रदेश बढ़ते-बढ़ते घनांगुलके असंख्यातवें भाग प्रदेश बढ़नेपर जघन्य देशावधिके विषयभूत कालमें एक समयकी वृद्धि होती है। इस प्रकार क्षेत्रमें इतनी वृद्धि होनेपर कालमें एक समयकी वृद्धि आगे भी होती है,इसे ध्रुववृद्धि कहते हैं। और पूर्वोक्त प्रकारसे ही कभी २५ mar For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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