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________________ निर्भरता से मुक्ति लिए कंधा नहीं मिला, तो आप क्या करेंगे? आप बेबस हो जाते हैं। अगर आप अभी से आंतरिक शक्ति और समझ को बढ़ाएँगे, तो बुढ़ापे में भी आपके मित्र आपके पास रहेंगे। वे आपके साथ बंधन या बोझ का एहसास नहीं करेंगे, उन्हें आपके साथ नाता रखने में खुशी मिलेगी - व्यक्ति से व्यक्ति के बीच में। ____यह अनुपम ध्यान हमें सत्य की एक झलक दिखाता है। यह हमें देखने देता है कि चारों ओर की ज्योति हमारी आत्मा की ज्योति ही है। बाहरी आकार अलग हो सकते हैं - चिमनी, बत्ती, छाया आदि - मगर भीतर की सजीव ज्योति एक ही है। आपको अनुभूति होने लगती है कि हर व्यक्ति एक ज्योति ही है, स्वयं आप भी। बस, इसी स्तर पर एक दूसरे के साथ संप्रेषण का सेतु बन सकता है। मानवता के साथ ऐसा सेतु बाँधने का और कोई मार्ग नहीं है। जब तक आप आकारों को देखते रहेंगे, सेतु नहीं बनेगा। सभी में इस ज्योतिर्मय गुण को देखने की अनुभूति आपको सिखाएगी कि यह जन्मजात है, न ही प्रदत्त है, न प्रयुक्त। यह व्यक्ति का स्वयंभूत स्वभाव है, मानव जीवन का जन्मसिद्ध अधिकार। इसीलिए इस शिक्षा का हमारे जीवन से गहरा संबंध है। यह मन की उस पुरानी आदत को मिटा देती है जो द्वैतभाव उत्पन्न करती है, इससे हमारी सिंहवृत्ति उभरने लगती है। जब मन अलगाव पैदा करता है, कहने लगता है कि 'यह सिंहवृत्ति किसी और के पास है, मेरे पास नहीं, तब एकत्व के द्वारा स्वयं को स्वयं के पास ले आइए। एकत्व की अनुभूति करें। सिंहवृत्ति को स्वयं में भी देखें और दूसरों में भी। अब आप दोनों को जानने के लिए तैयार हैं, अपनी अंतर्जात शक्ति और अपनी वर्तमान परिस्थिति को, अपने केन्द्र और अपनी परिधि को। एक और अनेक पर ध्यान करते हुए आप अनेकत्व को हटा सकते हैं, मन की परतों को खोलकर फेंक सकते हैं और सर्व-एकत्व के आनंदित भाव को उजागर कर सकते हैं। .... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001806
Book TitleJivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size11 MB
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