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________________ श्री चित्रभानु - बहुमुखी व्यक्तित्व की एक झलक विश्व भर में अहिंसा और अनेकान्त विचारधारा के प्रबोधक अन्तर्राष्ट्रीय दार्शनिक श्री चित्रभानु का जन्म २६ जुलाई सन् १९२२ को राजस्थान के तखतगढ़ में एक धार्मिक परिवार में हुआ। महाविद्यालय के आधुनिक शिक्षण के पश्चात्, भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने हेतु आप महात्मा गाँधीजी के परिचय में आए और भारत के स्वतंत्रता सेनानी बने। चार वर्ष की कोमल वय में माता की मृत्यु देखी, बारह वर्ष की उम्र में खिलती हुई कली सी छोटी बहन को बुख़ार से मरते देखा और फिर उन्नीसवें वर्ष में एक मेधावी सहपाठिनी को जानलेवा बीमारी से मौत के मुँह में जाते देखा। इन घटनाओं से आघात लगा और आपकी जीवन दिशा बदली, मृत्यु के रहस्य को जानने के लिए विश्वविख्यात रहस्यवादी, चिन्तकों से समागम किया। ११४२ में बोरडी (महाराष्ट्र) के सागरतट पर पूज्य आचार्य श्री चन्द्रसागरसूरिजी की छत्रछाया में दीक्षा ग्रहण की और मुनि चन्द्रप्रभसागर के नाम से प्रसिद्ध हुए। इकलौते पुत्र को संसार त्याग करते हुए देखकर आपके पिताश्री ने भी दीक्षा ग्रहण की और पू.मुनि श्री चन्द्रकान्तसागरजी के नाम से जाने गए। श्री चित्रभानु ने श्रमणावस्था में योग, ध्यान एवं धार्मिक ग्रंथों का गहन अध्ययन करके भारत के दूर-सुदूर प्रांतों, गाँवों एव नगरों में पदयात्रा करके लोक-जागृति फैलाई तथा सामान्य प्रजा में अहिंसा, करुणा, दया, समता, समन्वय आदि जैन सिद्धांतों का प्रचार किया। सन् १९६९ में भगवान महावीर के जन्म दिवस पर समग्र मुंबई के कत्लखाने बंद करवाए, इससे भी आगे बढकर सर्वधर्म के अधिनायकों को समझाकर गांधी जयन्ती, राम नवमी वगैरह आठ त्योहारों पर कत्लखाने बंद करने का प्रस्ताव नगरपालिका में पारित करवाया। आज भी इन त्योहारों पर मुंबई में कत्लखाने बंद रहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001806
Book TitleJivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size11 MB
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