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________________ ११२ जीवन का उत्कर्ष आएंगे जब उनका आपके साथ कोई संबंध हो। यदि आपने इन विचारों के संबंध में कुछ देखा या सुना न हो, तो मन में ये विचार नहीं आएँगे। वे आएँगे, तो उनके साथ आपका कोई संबंध ज़रूर होगा। ____ अगला चरण सामने ही है - अब आप अपने अवांछित विचारों को घुसपैठियों के रूप में देखते हैं। आप अच्छी तरह से जानते हैं कि ये विचार आपको नहीं चाहिए, इसलिए अपने आप से पूछते हैं, 'मैं इन्हें क्यों आने दे रहा हूँ? क्या मैं प्रयत्न करके इन्हें रोक नहीं सकता? क्या मैं अपनी इच्छा शक्ति का, अपने आत्म-वीर्य का प्रयोग नहीं कर सकता? क्या मुझमें यह आत्म-शक्ति नहीं है?' और इस तरह आप अपनी शक्ति से अवगत हो जाते हैं। और आप यह कहते हुए इस इच्छा शक्ति का प्रयोग करने लगते हैं, 'जो मुझे नहीं चाहिए, वह भीतर न आए।' जब आप अवांछित तत्त्वों के प्रवेश को रोकने के लिए समय निकालते हैं, तो आपका अभ्यास अपनी शक्ति की आंतरिक अभिज्ञता से एवं उस इच्छा से उत्पन्न होता है जिससे आप अपने जीवन की दिशा निर्धारित करते हैं। अब जो आप करते हैं वह एक कुदरती प्रवाह का नतीजा है, न कि किसी बाहरी दबाव का। संवर में आप स्वयं के साथ हैं। यदि निरंतर नई प्रतिबद्धताएं या नए संबंध आते रहते हैं, तो आप अपने विचारों को, अपने मनोभावों को, अपने जीवन को देख नहीं पाएंगे। जब आप रुक जाएँगे, तो आप देखने की स्थिति में आ जाएँगे। तब आप निश्चय करेंगे कि आपको कौन से विचार नहीं चाहिए। आप दृढ़ता से कहेंगे, ये भीतर न घुस पाएँ।' यदि फिर भी ये विचार घुसते चले आएँ, तो आप समझ जाते हैं कि आपके अंदर कोई कमज़ोरी है। इस कमज़ोरी के कारण आप उन विचारों को भी अंदर आने दे रहे हैं, जिन्हें आप नहीं चाहते हैं। ज़रा रुककर स्वयं को देखेंगे, तो आप उन व्यसनों को देख सकेंगे जो आपको बाँधे हुए हैं या आपको प्रभावित कर रहे हैं। __बँध अर्थात् बाँधना। जब आप कर्म सिद्धांत के परिप्रेक्ष्य में अपने व्यसनों को देखते हैं, तो आप समझ जाते हैं कि ये आंतरिक कमजोरियां आपको पुद्गल के साथ बाँध रही हैं। जब आप राग या द्वेष की अवस्था में हैं, तो आप अपने वास्तविक स्वभाव में नहीं हैं। आपकी ऊर्जा का बहाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001806
Book TitleJivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size11 MB
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