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________________ १०४ जीवन का उत्कर्ष आप से कहें, 'खिड़की बंद करने का समय आ गया है। जिस खिड़की को सबसे पहले बंद करना है, वह है आपका मुँह। मुँह बंद रखकर आँखों को खुला रखना बेहतर है ताकि यह देख सकें कि आपके निकट कौन है। क्रोध को दबाने की कोई ज़रूरत नहीं है। भीतरी भावनाओं पर नजर रखें और उन्हें वाष्प में बदलने दें, किसी सृजनशील ऊर्जा में परिवर्तित होने दें। जिस व्यक्ति पर गुस्सा आ रहा है, उसके और अपने बीच दूरी बनाए रखें। सबसे पहले अपने आपसे कहें, 'मैं गुस्से में हूँ। जो भी हुआ, वह मुझे अच्छा नहीं लगा।' इसी के साथ-साथ, संवर का उपयोग करें, स्वयं को बोलने से रोकें। यदि आप असंतुलन की अवस्था में बोलेंगे, जब क्रोध की ऊर्जा अधिक हो, तब आपके शब्द प्रवर्द्धित हो जाएंगे। इसलिए सामान्य स्थिति में आने तक स्वयं से रुकने को कहें। फिर विचार करें, 'मुझे क्रोध क्यों आ रहा है? क्या गलती किसी और की थी या मेरा भी इसमें हिस्सा था? क्या ताली बजाने के लिए दो हाथ ज़रूरी नहीं होते? क्या भविष्य में इससे बचा जा सकता है? बचने के तरीके क्या-क्या हैं?' जब आपके पास अन्वेषण का यह भाव है, जब आपके पास यह अवकाश है, तब आप क्रोध की ऊर्जा को बाहर निकलने नहीं देंगे। आप प्रेशर कुकर के समान उसे अंदर रोककर रखेंगे। फिर भाप को धीरे-धीरे बाहर निकालेंगे। उसके बाद, अधिक शब्दों में नहीं, अपितु सावधानी से चुने गए कुछ शब्दों में सौम्यता से कहें, 'मेरे गुस्से का यह कारण था। मैं इसे पाना चाहता हूँ। ' या, 'इसने मेरी शांति भंग की है। मगर मैं अपने क्रोध से आपकी शांति में खलल नहीं डालना चाहता।' इस रीति से आप क्रिया, प्रतिक्रिया और अंतक्रिया के दुश्चक्र को तोड़ सकते हैं। आपने क्रोध की पीड़ा झेली है और अब नहीं चाहते कि किसी और को वह पीड़ा झेलनी पड़े। आप चाहते हैं कि उसका वहीं अंत हो जाए। दूसरे व्यक्ति के प्रति करुणा का भाव व्यक्त करके आप उसकी चेतना को जागृत कर सकते हैं। चिल्लाकर आप क्या हासिल कर पाएँगे? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001806
Book TitleJivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size11 MB
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