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कंपनों के अंतःप्रवाह पर चिंतन
इसलिए याद रखिए, पाप और अपराध बोध आपके लिए नहीं है। अपने मन की आँखों के सामने अपनी सुंदर छवि रखिए। सोचिए कि आप रोग से रहित हैं, एक गतिशील ऊर्जा के समान - आध्यात्मिक आरोग्य से पूर्ण। इस तरह मानसिक अस्थिरता और असमंजस, जो अधिकांश रोगों के कारण है, दूर हो जाएंगे।
जैसे-जैसे आप ध्यान करने लगेंगे, स्वयं की सहज पवित्रता में आपका विश्वास किसी और के प्रोत्साहनात्मक शब्दों से नहीं, बल्कि अंदर की झलक से आएगा। जब आप किसी शांत झील के किनारे बिना किसी परेशानी के अकेले बैठे हुए हैं, तब आपको कैसा लगता है? आप स्निग्ध संध्या के रंगों को अपने सामने धीरे-धीरे प्रस्फुटित होते हुए देखते हैं। आपको कितनी शांति और आनंद की अनुभूति होती है! अब आपकी वास्तविक प्रकृति प्रकट हो जाती है। क्यों? क्योंकि कोई भी बात आपको परेशान नहीं कर रही है।
वह अनमोल अनुभूति शायद पाँच मिनट, दस मिनट, आधे घंटे तक रहे, लेकिन इतने में ही वह आपको अपने वास्तविक स्वरूप की एक झलक दिखा देती है। जो पल भर रह सकती है, वह लंबे समय तक भी बनी रह सकती है। सवाल उसे विस्तार देने का है। एक क्षणिक झलक से आप अपने अंतर में निहित शांति में विश्वास करने लगते हैं। आप उससे यह पूछने का साहस जुटा लेते हैं, 'यदि यह झलक कुछ क्षणों के लिए रह सकती है, तो अधिक समय के लिए क्यों नहीं?' इस तरह का विश्वास लंबे अंतराल तक बना रहेगा। यह किसी के आश्वासन या वादे से नहीं आया है, यह आपकी अपनी अनुभूति का नतीजा है। अपने अनुभवों के आधार पर आप आत्मज्ञान की गहराई में उतरते जाते हैं।
____ अतः बाहर जाने के बजाय साधक भीतर की ओर बढ़ता है। जिसे हम मौन, निर्लिप्तता या विरक्ति कहते हैं, वह तो मात्र अपनी चेतना की शुद्धि का प्रयत्न है। वह अपने अंदर के ऊर्जा स्रोत को परिशुद्ध करना है। इसके तीन चरण हैं। पहला है सुखाना। चेतना का जो जल मलिन एवं दूषित हो गया है, उसे कुछ समय के लिए सूखने दिया जाता है। केवल इसके निरीक्षण की प्रक्रिया से ही वह शक्तिशाली ऊष्मा आती है जो सभी
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