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________________ जीवन का उत्कर्ष पूर्व जन्म में हम उसकी झलक भूल गए। कुछ क्षण के लिए हम अंधे हो गए। इसीलिए हमें यह जन्म लेना पड़ा।' ७८ अब राजाओं ने उससे कहा, 'अब हम चाहते हैं कि आप ही हमारा मार्गदर्शन करें। आप हमारी गुरु हैं। हम जन्म-मरण के इस चक्र का अंत करना चाहते हैं । ' तब मल्ली ने कहा, 'हम जो आकर्षण महसूस करते हैं, वह शरीर के प्रति नहीं, बल्कि आत्मा के प्रति है। मानव जीवन की यात्रा में आत्मा हमेशा हमारे साथ रहती है। मगर इन दोनों को एक नहीं समझना चाहिए। दोनों की ही भिन्न-भिन्न प्रकृति है । अतः आइए, इस जीवन का उपयोग आत्मा को प्रकट करने के लिए, अपनी अभिज्ञता को शुद्ध करने के लिए, मुक्ति के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए करें ।' सातों ने एक साथ मुक्ति का मार्ग अपनाया और एक सुंदर जीवन बिताया। यही मल्ली आगे चलकर मल्लीनाथ बने, जो उन्नीसवें तीर्थंकर थे। जैन इतिहास में वे इस बात के लिए जाने जाते हैं कि उन्होंने मानव जाति को आत्मा की शुद्ध ज्योति और शरीर के नश्वर तत्त्वों में अंतर करना सिखाया। हमें भी वह झलक मिलनी चाहिए। हम यहाँ उसी आध्यात्मिक दिशा में चलने के लिए आए हैं। यदि हम केवल शरीर से आसक्त रहेंगे, तो निश्चय ही हमें दुःख और भारीपन का एहसास होगा। हम अलगाव की पीड़ा महसूस करेंगे। लेकिन यदि हमें उस झलक की अनुभूति होगी, तो हमारा संकल्प विकास की ओर, समझ की ओर, अपने उच्च स्वरूप की ओर उन्मुख हो जाएगा। हम एक दूसरे को आत्मिक स्तर पर जानने लगेंगे। जब मित्रों का मिलन आंतरिक दिव्यता की अनुभूति कराता है, तो वह अन्य संबंधों से भिन्न होता है। वह अलगाव के दुःख से मुक्त हो जाता है, वह स्थायी मिलन बनने लगता है। यदि आप कोई पुस्तक या पत्र पढ़ना चाहते हैं, तो उसे अपनी आँखों के एकदम सामने नहीं रखते। उसे कुछ दूरी पर रखना आवश्यक है। आप उस पर रोशनी पड़ने देते हैं। इसी प्रकार जब आप मोम और लौ की प्रकृति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001806
Book TitleJivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size11 MB
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