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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ आना, बेहोश होना, मिर्गी आना, बुखार आना, चेहरा फीका पड़ जाना, न्यूमोनिया होना, शरीर में पानी बढ़ना या घटना, पेट फूल जाना, पेशाब बंद होना, और शरीर में सोडियम, पोटेशियम की मात्रा कम-ज्यादा होना... इत्यादि । फिजिशियन को प्रतिदिन ध्यानपूर्वक केस देखकर इन सभी समस्याओं पर ध्यान देना चाहिये, जिससे केस का परिणाम अच्छा आ सके, मरीज़ जीवित रहे और शीघ्रता से ठीक हो जाए । जब मरीज़ को श्वास में तकलीफ हो या मस्तिष्क का सूजन अधिक बढ़ जाने से वह कोमा में चला जाए तब उसे वेन्टीलेटर पर रख कर उसका जीवन बचाने की कोशिश की जा सकती है। (५) न्यूरोसर्जरी :
____ पक्षाघात के कुछ केसों में (लगभग २ से ५ प्रतिशत) न्यूरोसर्जन की आवश्यकता रहती है, जो ओपरेशन द्वारा मरीजों की जिन्दगी बचा सके अथवा मस्तिष्क के कोषों की हानि कम कर सके । इसमें क्रेनीएक्टमी, ड्यूराप्लास्टी, इमरजन्सी के रोटिड बायपास या एम्बोले क्टमी आदि ऑपरेशन होते है । हेमरेज की वजह से होनेवाले पक्षाघात में कभी कभी खोपडी खोलकर रक्त की गांठ निकाल ली जाती है (अगर दवाई से दर्दी की स्थिति में फर्क न हो और हेमरेज निकाला जा सके ऐसा हो तो) । (६) सपोर्टिव (आधाररूप) थेरापी :
उपचार के साथ मरीज़ को पूर्ण पोषण और प्रवाही मिले, उसके शरीर के द्रव्य बने रहे और योग्य विटामिन्स प्राप्त हो, इसका ध्यान रखना चाहिए। योग्य समय पर एन्टीबायोटिक दी जा सकती है । यह सब सपोर्टिव ट्रीटमेन्ट कही जाती है ।
पक्षाघात होने के १-२ दिन में डॉक्टर, फिजियोथेरेपिस्ट को बुलाते हैं। वह हाथ-पैर तथा फेफडों का व्यायाम शुरु करवाते हैं । प्रतिदिन ४ से ६ बार २० से ४० मिनट तक करने की यह कसरत मरीज़ के रिस्तेदार को स्वयं ही सीख कर मरीज को करवानी चाहिए। इससे अनेक लाभ होते हैं । अधिकांश अंगों का हलन-चलन शीघ्रता से सुधरता है और छाती में कफ़ जमा नहीं होता और अंग स्टिफ (कड़क) नहीं होते है।
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