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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ (४) पेशाब करवाने की ट्यूब - केथेटर (Urinary catheter) : (१) मरीज़ को चौबीस घंटे में कितना पेशाब होता है, इसका ध्यान
रखें और उसकी नोंध डॉक्टर को बताएँ । मरीज़ को चौबीस घंटे में पेशाब २५०० मि.लि. से अधिक हो या १००० मि.लि. से कम हो और पेशाब अत्याधिक पीला (हल्दी के रंग जैसा), लाल या मवाद जैसा दिखें तो डॉक्टर को
बुलाना चाहिए। (३) प्रति घंटे मरीज़ को होने वाली पेशाब की मात्रा देखते रहें। अगर
यह कम लगे तो डॉक्टर या नर्स को बताएँ । (४) सामान्यत: केथेटर अंदर का हो (Indwelling Catheter) तो
उसे पंद्रह दिनों में बदलना चाहिए। अगर वह बाहर का केथेटर
हो तो प्रत्येक तीसरे दिन बदलना चाहिए । (५) सिलिकोन का (सिलास्टिक) केथेटर रखा जाए तो वह लंबे
समय तक चल सकता हैं । (६) केथेटर लगे हुए भाग को ड्रेसिंग से साफ रखने में सावधानी
रखें।
(५) मलत्याग ( Motion) :
मरीज़ का पेट प्रतिदिन साफ हो वह हितकारक है । लेकिन दो दिनों के बाद भी मलत्याग न हो तो डॉक्टर को बताएँ । डॉक्टर फीडिंग ट्यूब द्वारा दवाई या गुदा मार्ग से एनिमा देकर या सपोझिटरी रखने की सलाह दे तो उसका पालन करें। (६) आँख की दरकार :
बेहोश मरीज़ की आँख खुली रहती है तो वह कभी लाल हो जाती है, और कोर्निया के नाजुक हिस्से पर छाले (Ulcer) होने से आँखों में अंधापन आ सकता है। इसलिए डॉक्टर के सूचन अनुसार पेड से आंखे ढाँक दे और Moisol आदि योग्य प्रवाही की बुंद डालें । आवश्यक लगे तो ऐन्टिबायोटिक बुंद डालें।
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