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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ सुंदरता - नाजुकता कम होना, अनावश्यक बाल उगना, याददास्त कम होना, गले में गांठ होना, छोटे मस्तिष्क को हानि पहुँचना या ऐसी अन्य परेशानियाँ होते हुए देखा जाता है। दवाई की मात्रा अधिक हो तो मरीज़ को एक चीज दो दिखाई देती है, लड़खड़ाहट शुरु हो जाती है । इसलिए यह दवाई रक्त में कितनी मात्रा में है, यह समय समय पर देखना चाहिए । जिसे 'ब्लड फिनाइटोइन लेवल' कहते है । यह रक्त निश्चित समय पर लेना चाहिए, (डोज़ के पहले), वरना उसका कोई मतलब नहीं रहता । गर्भवती महिलाओं को अक्सर अन्य दवाई दी जाती है, क्योंकि इससे कभीकभी (0.7 प्रतिशत) बच्चे विकलांग पैदा होते हैं ।
(२) कार्बामेझेपिन ( Carbamazepine ) :
यह दवाई से भी उपर बताये अनुसार, लेकिन क्वचित देखने को मिलती स्टिवन्स - ज्होन्सन नामक एलर्जी जिंदगी के लिए खतरा बन जाती है। त्वचा और म्युक्स मेम्ब्रेन की गंभीर एलर्जी भी कभीकभी हो सकती है । उपरांत श्वेतकण मुख्यतः न्यूट्रोफिल्स कम हो सकते हैं, जिससे गले में और जिह्वा पर छाले पड़कर संक्रमण हो सकता है । इस कारण यह दवाई लेने वालें मरीज के रक्त की तपास नियमित हर ३-४ महिने में जाँच करवानी चाहिए । यह दवाई गर्भावस्था दौरान निर्दोष या हानि रहित है । बच्चे को किसी प्रकार का दुष्प्रभाव होता हो ऐसा कोई खास रिपोर्ट नहीं है ।
(३) वाल्प्रोईक एसिड ( valproic Acid ) :
यह दवाई विविध प्रकार की एपिलेप्सी में उपयोग की जाती है। उससे वज़न बढ़े, बाल झरे यह सामान्य है, परंतु वह कभीकभी यकृत (लिवर) को हानि पहुँचाती है। इसलिए यह दवाई उपयोग में हो तब तक नियमित ३ से ४ महीने में एक बार एस. जी. पी. टी. नामक ब्लडटेस्ट करवाना चाहिए । यद्यपि इस सलाह में कई दुविधाएँ भी हैं जैसे कि हफ्ते पहले एस. जी. पी. टी. का रिपोर्ट नोर्मल हो और अचानक लिवर बिगड़ने लगे। ऐसा हो तो दुबारा टेस्ट करवा कर दवाई बंद कर देनी चाहिए। गर्भवती महिला को यह दवाई देने से बच्चे को करोड़रज्जु इत्यादि में तकलीफ शुरु होने के रिपोर्ट मिले है। लेकिन इसकी मात्रा प्रत्येक १००० में से १० बालक तक सीमित हैं । यह जानकारी गर्भावस्था दौरान नियमित रूप से सोनोग्राफी और आल्फा-फिटोप्रोटीन नामक
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