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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ (४) शरीर में स्नायुओं का तंग हो जाना, हाथ-पैर ठंडे हो जाना, शरीर
में पसीना होना, रोंगटे खड़े हो जाना, कई बार कंपन-ध्रुजारी का
अनुभव होना। (५) रक्त जम जाने की प्रक्रिया शीघ्र बनना । (६) आँख की पुतलियाँ चौडी हो जाना । (७) इन्द्रियाँ सतेज बनें और सुनने की, देखने की और सूंघने की
तीव्रता बढ़े। (८) शरीर की चयापचय की प्रक्रिया (मेटाबोलिझम) में वेग आना। (९) मस्तिष्क की विचारशक्ति बढ़ना । (१०) निर्णयशक्ति तथा परिस्थिति परखने की सूझ तेज बने और
स्मरणशक्ति सतेज़ बने । कोई बार 'क्या होगा?' ऐसा डर भी
लगता है। • शरीर पर लंबे समय के तनाव का नकारात्मक प्रभाव : (१) व्यवहार की समस्याएँ :
स्वभाव गुस्सेवाला और चिडचिडा हो जाना, कार्यशक्ति में कमी आ जाना, स्वभाव से भुलक्कड होना, विवेकहीन और बेध्यान होना, खराब आदतों का शिकार होना, जातीय जीवन की समस्या पैदा होना, आहार में अरुचि अथवा अत्याधिक खाने की आदत पड़ना । प्रलंब-तनाव के कारण व्यवहार में होने वाली समस्याओं के यह सभी चिह्न है। (२) स्वास्थ्य की समस्याएँ : - इनमें सिरदर्द, दम, हाई बी.पी., जोडों का दर्द, त्वचारोग, हृदयरोग, जठर के छाले, अनिद्रा, चक्कर आना और डिप्रेशन इत्यादि का समावेश होता है। एक अंदाज अनुसार करीबन ८० प्रतिशत बीमारियाँ मानसिक तनाव की वजह से शरीर में पैदा होती है, जिसे मनोदैहिक (सायकोसोमेटिक) बीमारी कहते है।
इसके उपरांत तनाव से रोगप्रतिरोधक शक्ति कम होती है ।
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