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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ केन्सर से होनेवाली न्यूरोपथी ७. मायलोमा जैसे रोगों से होनेवाली पेराप्रोटीनेमिक न्यूरोपथी ८. वंशानुगत न्यूरोपथी (हेरिडिटरी मोटर । सेन्सरी न्यूरोपथी) ९. नस पर दबाव आने से होती न्यूरोपथी (एन्ट्रेपमेन्ट न्यूरोपथी)
संक्षिप्त में कहा जाये तो वंशानुगत कारणों से प्रारंभ करके वायरस तक और केन्सर से लेकर दवाई के दुष्प्रभाव तक, शरीर के किसी भी अंग के रोग के कारण से प्रारंभ करके पोषक तत्वों की कमी तक या लेप्रसी से लेकर डायाबिटीस तक, ऐसे अनेक कारणों से नसों-नर्स पर असर हो शकती है या तो अन्य तरह से बोले तो नर्स पर असर हुई हो तो क्वचित पूरे शरीर में रोग का उद्भवस्थान ढूँढना पड़ता है । और फिर भी २० से ३० प्रतिशत पोलीन्यूरोपथी के केस में न्यूरोपथी का सही कारण पता नहीं चलता है। वह आधुनिक चिकित्सा पद्धति के लिए एक चुनौती है। वैसे तो न्यूरोपथी के असंख्य कारण है, पर हमारे देश में प्रचलित और महत्वपूर्ण न्यूरोपथी के बारे में नीचे संक्षिप्त में लिखने का प्रयास किया है।
(१) ए. आई. डी. पी. : ए.आई.डी.पी. यानी एक्यूट इन्फ्ले मेटरी डिमायलिनेटिंग पोलिरेडिक्युलोन्यूरोपथी। इसके उपरांत उसे जी.-बी.एस. या गुलियन बारे सिन्ड्रोम भी कहा जाता है । इस रोग में किसी कारणसर ज्ञानतंतु में कमजोरी आती है । मरीज़ के पैर में सबसे पहले असर होने से पैर में सुनापन या बहेरापन आता है, साथ में सामान्य कमजोरी के उपरांत हाथ-पैर के स्नायुओं का शिथिल हो जाना और श्वासोच्छ्वास की जानलेवा तकलीफ तक के लक्षण भी इस बीमारी के मरीज में देखने को मिलते हैं।
ज्ञानतंतुओं(नसों) में किसी कारणसर सूजन आने से मोनोसाइट मेक्रोफेज नामक कोषों का प्रमाण बढ़ जाता है। इसकी प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप चेताओं का मायलिन नामक आवरण नष्ट हो जाता है और ज्ञानतंतु कमजोर पड़ जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि ज्ञानतंतु के आवरण 'मायलिन' को प्रतिकूल वैसे एन्टिबोडी (प्रतिद्रव्य) उत्पन्न होने से नसें कमजोर बनने की प्रक्रिया प्रारंभ होती हैं।
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