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परम्परा तीर्थंकर की पूजा में वस्त्र, आभूषण, गंध, माल्य, नवैद्य आदि अर्पित करे यह क्या सिद्धान्त की विडम्बना नहीं कही जायेगी? मंदिर एवं जिनबिम्ब प्रतिष्ठा आदि से सम्बन्धित सम्पूर्ण अनुष्ठान जैन परम्परा में ब्राह्मण परम्परा की देन हैं और उसकी मूलभूत प्रकृति के प्रतिकूल कहे जा सकते हैं। वस्तुतः किसी भी परम्परा के लिए अपनी सहवर्ती परम्परा से पूर्णतया अप्रभावित रह पाना कठिन है और इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि जैन परम्परा की पूजा अनुष्ठान विधियों में हिन्दू तान्त्रिक परम्परा का प्रभाव आया।
जैन परम्परा के विविध पूजाविधान
तन्त्र युग में जैन परम्परा के विविध अनुष्ठानों में गृहस्थ के नित्यकर्म के रूप में सामायिक, प्रतिक्रमण आदि षडावश्यकों के स्थान पर जिनपूजा को प्रथम स्थान दिया गया। जैन परम्परा में स्थानकवासी, श्वेताम्बर-तेरापंथ तथा दिगम्बर तारणपंथ को छोड़कर शेष परम्पराएँ जिनप्रतिमा के पूजन को श्रावक का एक आवश्यक कर्त्तव्य मानती हैं। श्वेताम्बर परम्परा में पूजा सम्बन्धी जो विविध अनुष्ठान प्रचलित हैं उनमें प्रमुख हैं- अष्टप्रकारीपूजा, स्नात्रपूजा या जन्मकल्याणकपूजा, पंचकल्याणकपूजा, लघुशान्तिस्नात्रपूजा, बृहदशान्ति स्नात्रपूजा, नमिऊणपूजा, अर्हत्पूजा, सिद्धचक्रपूजा, नवपदपूजा, सत्रहभेदीपूजा, अष्टकर्म की पूजा, अन्तरायकर्म की पूजा, भक्तामरपूजा आदि । दिगम्बर परम्परा में प्रचलित पूजाअनुष्ठानों में अभिषेकपूजा, नित्यपूजा, देवशास्त्रगुरुपूजा, जिनचैत्यपूजा, सिद्धपूजा आदि प्रचलित हैं। इन सामान्य पूजाओं के अतिरिक्त पर्वदिनपूजा आदि विशिष्ट पूजाओं का भी उल्लेख हुआ है। पर्वपूजाओं में षोडशकारणपूजा, पंचमेरुपूजा, दशलक्षणपूजा, रत्नत्रयपूजा आदि का उल्लेख किया जा सकता है।
दिगम्बर परम्परा की पूजा पद्धति में बीसपंथ और तेरापंथ में कुछ मतभेद है। जहाँ बीसपंथ पुष्प आदि सचित द्रव्यों से जिनपूजा को स्वीकार करता है वहाँ तेरापंथ सम्प्रदाय में उसका निषेध किया गया है। पुष्प के स्थान पर वे लोग रंगीन अक्षतों (तन्दुलों) का उपयोग करते हैं। इसी प्रकार जहाँ बीसपंथ में बैठकर वहीं तेरापंथ में खड़े रहकर पूजा करने की परम्परा है।
यहाँ विशेषरूप से उल्लेखनीय यह है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्पराओं के प्राचीन ग्रंथों में अष्टद्रव्यों से पूजा के उल्लेख मिलते हैं। यापनीय ग्रंथ वारांगचरित (त्रयोविंशसर्ग) में जिनपूजा सम्बन्धी जो उल्लेख हैं वे श्वेताम्बर परम्परा के राजप्रश्नीय के पूजा सम्बन्धी उल्लेखों से बहुत कुछ मिलते है।
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