________________
३५४
जैन धर्म का तंत्र साहित्य जैन व्यक्तिगत भंडार, मैसूर तथा श्रवणबेलगोला के भट्टारक जी के निजी भण्डार की सूचियों में इसका उल्लेख मिलता है। उसमें दूसरा विद्यानुवाद नाम का ग्रन्थ इन्द्रनन्दि गुरु द्वारा विरचित बताया गया है। इसका निर्देश भी पद्मराग जैन, मैसूर के निजी भण्डार की सूची में उल्लिखित है। जहाँ तक मेरी जानकारी है ये ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित हैं। अतः इनके संबंध में अधिक जानकारी दे पाना सम्भव नहीं है। विद्यानुवाद अंग
इस ग्रन्थ का निर्देश भी हमें जिनरत्नकोश में मिलता है। उसमें इसे हस्तिमल द्वारा रचित बताया गया है। ग्रन्थाग्र १०५० निर्देशित है। यह ग्रंथ मूडविद्रि के भट्टारक चारुकीर्तिजी महाराज के निजी भण्डार की सूची में उल्लिखित है। . विद्यानुशासन
यह ग्रन्थ जिनसेन के शिष्य मल्लिसेन द्वारा रचित है। इसमें २४ अध्याय हैं और लगभग ५००० मंत्रों का संग्रह है। यह ग्रन्थ कैटलॉग ऑफ संस्कृत एण्ड प्राकृत मैन्युस्क्रिप्ट्स सी०पी०एम०, बरार में उल्लिखित है। भण्डारकर इन्स्टीच्यूट, पूना में भी इसकी एक प्रति होने की सूचना मिलती है। इसके अतिरिक्त पीटर्सन ने भी अपनी रिपोर्ट के छठे भाग में पृ० १४४ पर इसका निर्देश किया है। श्रवणबेलगोला के भट्टारकजी के भण्डार में इसके उपलब्ध होने की सूचना मिलती है। यह बृहद्काय ग्रन्थ होना चाहिए। मेरी जानकारी के अनुसार यह अभी तक अप्रकाशित है। आचार्य महाप्रज्ञजी ने भारतीय तंत्र शास्त्र में प्रकाशित सकलीकरण संबंधी अपने लेख में इसका निर्देश किया है। ज्ञानार्णव
तंत्र साधना के आध्यात्मिकपक्ष की दृष्टि से शुभचन्द्र का ज्ञानार्णव एक महत्त्वपूर्ण कृति है। आचार्य शुभचन्द्र का काल लगभग १०वीं शताब्दी माना जा सकता है यद्यपि इस ग्रन्थ का मूल विषय तो जैन परम्परा सम्मत महाव्रतों की साधना तथा मन के परिणामों की विशुद्धि हेतु ध्यानसाधना की विधि का प्रतिपादन करना है। इससे धर्म ध्यान की साधना के अंतर्गत पिण्डरथे, पदस्थ, रूपस्थ
और रूपातीत ध्यान के प्रकारों तथा पार्थिवी, वायवी आदि धारणााओं का उल्लेख है। जिनका संबंध तांत्रिक साधना से है। इससे यह फलित होता है कि ज्ञानार्णव पर तांत्रिक परम्परा का प्रभाव आया है। क्योंकि इसके पूर्व के किसी भी जैन ग्रन्थ में ध्यान के इन प्रकारों का उल्लेख नहीं मिलता। स्वयं ज्ञानार्णव, यह
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org