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________________ ३२० तान्त्रिक साधना के विधि-विधान अर्थात् इसके पश्चात् वह मन्त्र स्नान करे। इस मंत्र को बोलते हुए तीन बार वासक्षेप सुगंधित चूर्ण का क्षेपण करे । सिंहतिलकसूरि ने मन्त्रस्नान के लिए निम्न विधि दी है 'ॐ अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणि अमृतवाहिनि अमृतं स्रावय-स्रावय हु फुट् स्वाहा' । इस प्रकार जल के सर्जन की कल्पना करे। इसके पश्चात् गरुङमुद्रा द्वारा कुण्ड की परिकल्पना करके निम्नमंत्र से मंत्र स्नान करे (9"ॐ अमले विमले सर्वतीर्थं जलैः प पः पां पां वां वां अशुचिशुचिर्भवामि स्वाहा। इस प्रकार सर्व तीर्थों के जल की अंजलि में संकल्पना करके सिर से पैर तक कर स्पर्श करते हुए मन्त्रस्नान किया जाता है। कल्मषदहन और हृदयशुद्धि न्यास अथवा सकलीकरण के पूर्व चित्तविशुद्धि हेतु जिन दो क्रियाओं का उल्लेख जैनाचार्यों ने किया है, वे हैं। कल्मषदहन और हृदयशुद्धि कल्मषदहन का अर्थ है- हृदय के विकारों, वासनाओं और दुर्भावनाओं को समाप्त करना। मन्त्रराजरहस्य में कल्मषदहन के निम्न मन्त्र का उल्लेख मिलता है ॐ विद्युत् स्फुलिङ्गे महाविधे सर्वकल्मषं दह दह स्वाहा। इस मन्त्र का उच्चारण करते हुए करों से भुजा के मध्यभाग का स्पर्श करना चाहिए। तदुपरान्त मुट्ठी बांधकर निम्न मन्त्र का उच्चारण करना चाहिए ॐ कुरुकुल्ले स्वाहा, हास्वाल्लेकुरुकुरु ॐ। यह कल्मषदहन की क्रिया हुई, इसके पश्चात् हृदयशुद्धि करे। हृदयशुद्धि का अर्थ है हृदय की दुर्भावनाओं को दूर कर उसे शुभ भावनाओं से आपूरित करना। हृदयशुद्धि निम्न मन्त्र से की जाती है ॐ विमणय विमलचित्ताय झ्वाँ इवौँ स्वाहा। इस मन्त्र का उच्चारण करते हुए तीन बार वाम हस्त से हृदय का स्पर्श करना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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