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________________ अध्याय-१० तान्त्रिक साधना के विधि-विधान आध्यात्मिक शक्ति के विकास एवं लौकिक उपलब्धियों के लिए मंत्र और यंत्र की साधना विधियों का उल्लेख अनेक जैनाचार्यों ने अपने-अपने ग्रंथों में किया है। विशेषरूप से सिंहतिलकसूरि ने मन्त्रराजरहस्य में, जिनप्रभसूरि ने विधिमार्गप्रपा में, मल्लिषेणसूरि ने भैरवपद्मावतीकल्प में, आचार्य कुन्थुसागर जी ने लघुविद्यानुवाद में तंत्र साधना की अनेक विधियों का उल्लेख किया है। विभिन्न आचार्यों द्वारा प्रतिपादित तंत्र साधना की विभिन्न विधियों में कहीं क्रमभेद है तो कहीं संख्याभेद है और कहीं-कहीं तो मंत्रभेद भी है। वस्तुतः तंत्र साधना विधियों को लेकर जैन आचार्यों में अनेक अम्नायें प्रचलित रही हैं और उन आम्नायों के आधार पर साधनाप्रक्रिया तथा मंत्र आदि को लेकर कुछ मतभेद देखे जाते हैं। फिर भी सामान्यरूप से उनमें कोई बहुत महत्त्वपूर्ण अन्तर परिलक्षित नहीं होता। मंत्ररहस्य में सिंहतिलकसूरि ने तांत्रिक साधना के जिस विधान का उल्लेख किया है, उसके अन्तर्गत निम्न विधान आते हैं- (१) भूमिशुद्धि (२) कराङ्गन्यास (३) सकलीकरण (४) दिक्पाल आह्वान (५) हृदयशुद्धि (६) मंत्रस्नान (७) कल्मषदहन (८) पंचपरमेष्ठि स्थापन (६) आह्वान (१०) स्थापन (११) सन्निधान (१२) सन्निरोध (१३) अवगुण्ठन (१४) छोटिकाप्रदर्शन (१५) अमृतीकरण (१६) जाप (१७) क्षोभण (१८) क्षामन (१६) विसर्जन और (२०) स्तुति। वर्धमानविद्याविधि में जिस मंत्र साधना विधि का उल्लेख है उसमें निम्न सोलह विधियों के उल्लेख है -(१) पञ्चाङ्गशौच (२) भूमिशुद्धि (३) मंत्रस्नान (४) वस्त्रशुद्धि (५) पंचांगुलिन्यास (६) कल्मषदहन (७) हृदयशुद्धि (८) दुःस्वप्न दुर्निमित्ताशनिविद्युत्शत्रुभयादिरक्षा (६) सकलीकरण (१०) पट या यंत्र पूजा (११) सजीवतापादन (१२) दिग्बंधन (१३) जप (१४) आसनक्षोभण (१५) क्षमाप्रार्थना (१६) विसर्जन एवं हृदय में इष्ट स्थापन। ऋषिमंडलस्तव में मन्त्र साधना विधान के निम्न आठ अंग माने गये हैं- (१) मंत्र (२) न्यास (३) ध्यान (४) साधन (५) जप (६) तप (७) अर्चा और (E) अन्तयोग। श्रीसागरचंदसूरि ने मंत्राधिराजकल्प में मन्त्र साधना के निम्न छः ही अंग स्वीकार किये हैं- (१) आसन (२) सकलीकरण (३) मुद्रा (४) पूजा (५) जप और (६) होम। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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