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________________ अध्याय ६ कुण्डलिनी जागरण एवं षट्चक्रभेदन : जैन दृष्टि हठयोग और तन्त्र साधना में देह स्थित षट्चक्रों के भेदन और कुण्डलिनी शक्ति के जागरण का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। वस्तुतः शरीर और शारीरिक गतिविधियों के प्रति सजगता की साधना श्रमण परम्परा में अत्यन्त प्राचीनकाल से चली आ रही है। विपश्यना और आनापानसति (श्वासोच्छवास की स्मृति, इसके प्राचीनतम रूप रहे हैं। आचारांगसूत्र (१/२/५) में कहा गया है कि साधक को अन्तर में प्रवेश करके देह के आन्तरिक भागों में स्थित ग्रन्थियों और उनके अन्तः स्रावों को देखना चाहिए। पुनः उसमें कहा गया है कि आयत चक्षु लोक की विपश्यना करने वाला अर्थात् लोक के प्रति अप्रमत्तचेता साधक लोक के उर्ध्वभाग को जानता है, लोक के तिर्यक् भाग को जानता है और लोक के अधोभाग को जानता है। ज्ञातव्य हैं कि आचारांग में 'लोक' शब्द का प्रयोग शरीर के अर्थ में भी हुआ है। शीलांक आदि टीकाकारों ने लोक का अर्थ शरीर ही किया है। लोक की शरीर से समरूपता की अवधारणा पर्याप्त प्राचीन है। ऋग्वेद के दशम मण्डल के पुरुषसूक्त में लोक की विराट पुरुष के शरीर के रूप में संकल्पना है। यही लोक पुरुष की कल्पना श्रीमद्भागवत (६वीं शती) के द्वितीय स्कन्ध के पञ्चम अध्याय में भी मिलती है। ऋग्वेद और भागवत की लोक पुरुष की अवधारणा में मुख्य अन्तर यह है कि जहाँ ऋग्वेद में लोक पुरुष को सहस्र, शीर्ष, सहस्रचक्षु और सहस्रपाद कहा गया है, वहीं श्रीमद्भागवत में स्वर्गलोक, भूलोक, पाताललोक आदि को लोक पुरुष के विभिन्न अंगों के रूप में बताया गया है। __ जैनपरम्परा में, आचारांग में शरीर को लोक का प्रतिरूप मानकर ध्यान साधना के निर्देश तो हैं किन्तु उसमें लोक पुरुष की स्पष्ट कल्पना नहीं है। मात्र लोक या शरीर के अधो, उर्ध्व और तिर्यक् (मध्य) भाग का उल्लेख है। भगवती आदि अन्य आगमों में भी लोक के आकार (संस्थान) का उल्लेख तो है, किन्तु कहीं भी उसे पुरुष का प्रतिरूप नहीं बताया गया है। फिर भी आगमों में ग्रैवेयक देवलोक की कल्पना से ऐसा अवश्य लगता है कि जैनों में प्राचीन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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