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________________ २५० यंत्रोपासना और जैनधर्म | ओं को हापंचवर्ण लिखित षट् दलवक्रमध्ये हस करत | हाँ हाँ हाँ हाँ । हाँ हाँ त्रैलोक्यंचालयतिसपदिजनहितरक्षमा दविपद्ये।। हाँ हाँ का हूँ का कॉनांतरासेवर परिकलितेवायुनावेष्टितागी। हाँ हाँ । हाँ हाँ हाँ ही हीनेष्टया रक्तपुष्पैर्जपित दलमहाक्षोभणीद्राविणीत्व कीर्तिवर्धक एवं वशीकरण यन्त्र पट कोणेचक्रमध्ये प्रणववरयुतवाग्भवेकामराजे। क्लीं क्लीं लॉ क्लीं क्रीं क्लीं ध्यानात् संक्षोभयति त्रिभुवनवसकृदरतमंदिविपो॥ | क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं हंसाढ़े सविन्दो विकसित कमलेकर्णिको निधाय लॉ लॉ क्लीक्की की नित्य क्लिन्नमदाढ़ेद्रवतिसततंसाकुसपासहस्तव % 3D बुद्धिप्रदाता यन्त्र 'लघुविद्यानुवाद' से साभार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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