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यंत्रोपासना और जैनधर्म
| ओं को हापंचवर्ण लिखित षट् दलवक्रमध्ये हस करत
| हाँ हाँ हाँ हाँ
।
हाँ
हाँ त्रैलोक्यंचालयतिसपदिजनहितरक्षमा दविपद्ये।।
हाँ हाँ
का
हूँ का कॉनांतरासेवर परिकलितेवायुनावेष्टितागी।
हाँ हाँ
। हाँ हाँ हाँ ही हीनेष्टया रक्तपुष्पैर्जपित दलमहाक्षोभणीद्राविणीत्व
कीर्तिवर्धक एवं वशीकरण यन्त्र पट कोणेचक्रमध्ये प्रणववरयुतवाग्भवेकामराजे।
क्लीं क्लीं लॉ क्लीं क्रीं क्लीं
ध्यानात् संक्षोभयति त्रिभुवनवसकृदरतमंदिविपो॥
| क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं हंसाढ़े सविन्दो विकसित कमलेकर्णिको निधाय
लॉ लॉ क्लीक्की की नित्य क्लिन्नमदाढ़ेद्रवतिसततंसाकुसपासहस्तव
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बुद्धिप्रदाता यन्त्र 'लघुविद्यानुवाद' से साभार
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