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________________ २४८ लघुविद्यानुवाद में संगृहीत यन्त्र आचार्य श्री कुन्थुसागर जी के लघुविद्यानुवाद नामक ग्रन्थ में अनेक यन्त्रों का विपुल मात्रा में संग्रह किया गया है। इस ग्रन्थ में विभिन्न यक्ष-यक्षियों एवं देवियों से सम्बन्धित मन्त्रों से गर्भित यन्त्रों के साथ-साथ मातृकापदों और संख्याओं के आधार पर निर्मित यन्त्रों का भी एक बृहद् संग्रह है । यद्यपि जैनेन्द्र सिद्धान्तकोश एवं लघुविद्यानुवाद दोनों ही ग्रन्थों की रचना दिगम्बर परम्परा में ही हुई है फिर भी लघुविद्यानुवाद में आचार्य श्री ने न केवल दिगम्बर परम्परा में प्रचलित यन्त्रों का संग्रह किया है अपितु उन्होंने श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित घण्टाकर्ण महावीर और उवसग्गहर स्तोत्र पर आधारित यन्त्र एवं अन्य ऐसे ही कुछ अन्य यन्त्रों का संग्रह किया है। मात्र यही नहीं, उनके इस ग्रन्थ में भैरव, सुग्रीव, हनुमान, गरुड़, शंकर, महादेव, शिव, तारा, चामुण्डा आदि हिन्दू परम्परा के अनेकों देवी-देवताओं द्वारा अधिष्ठित मंत्र और यन्त्र भी संगृहीत है। इसके साथ ही जहां तक मंगलम् जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश और भैरवपद्मावतीकल्प में संगृहीत यन्त्रों का प्रश्न है, उनमें संख्या पर आधारित यन्त्रों का प्रायः अभाव ही है। इनमें मात्र दो-तीन यन्त्र ही ऐसे हैं जिनमें संख्याओं का उल्लेख हुआ है, वहीं लघुविद्यानुवाद में संगृहीत यन्त्रों में दो सौ से अधिक यन्त्र संख्याओं पर आधारित हैं। मात्र इतना ही नहीं लघुविद्यानुवाद में सामान्य यन्त्रों एवं संख्या पर आधारित यन्त्रों का निर्माण किस प्रकार करना चाहिए और उन्हें सिद्ध किस प्रकार से करना चाहिए, इसका भी विस्तार से उल्लेख हुआ है। जिन पाठकों की इसमें रुचि हो वे उन्हें उसमें देख सकते हैं । यन्त्रोपासना और जैनधर्म लघुविद्यानुवाद में संगृहीत यन्त्रों की एक विशेषता यह भी है कि इसके ६५ प्रतिशत यन्त्र तो लौकिक उपलब्धियों के निमित्त हैं। उदाहरणार्थ- द्रव्यप्राप्ति यन्त्र (पृ० २५७); वशीकरण यन्त्र ( पृ० २५८); उच्चाटन निवारण यन्त्र ( पृ० २५८ ); प्रसूतिपीड़ाहर यन्त्र (पृ० २५६); मृत्युकष्ट निवारण यन्त्र ( पृ० २५६); पिशाच पीड़ायन्त्र (पृ० २६०); सर्वकार्यलाभदाता यन्त्र ( पृ० २६२); आपत्ति निवारण यंत्र (पृ० २६४): गृहक्लेश निवारण यन्त्र ( पृ० २६५); गर्भरक्षा यन्त्र ( पृ० २६६); प्रभाव प्रशंसावर्धक यन्त्र ( पृ० २७२); ज्वरपीड़ाहर यन्त्र ( पृ० २७४ ); पुत्रदाता यन्त्र ( पृ० २८५); संकटमोचन यन्त्र ( पृ० २६३) आदि यन्त्र लौकिक एषणाओं की पूर्ति के लिए ही हैं। लघुविद्यानुवाद के धारण-यन्त्र कागज, भोजपत्र, चांदी अथवा सोने के पत्रों पर विधिपूर्वक लिखवाकर धारण किए जाने से व्यक्ति के लौकिक संकटों का निवारण होता है एवं सुख-सम्पत्ति आदि की प्राप्ति होती है । पाठकों की जानकारी के लिए हम उनमें से कुछ यन्त्रों को नीचे दे रहे हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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