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यन्त्रोपासना और जैनधर्म भैरवपद्मावतीकल्प में संगृहीत यन्त्र यन्त्रों के संग्रह के इस क्रम में 'भैरवपद्मावतीकल्प' में ४४ यन्त्र संगृहीत किये गये हैं। ये मंत्र 'मंगलम्' में संगृहीत चतुर्विंशतितीर्थंकर अनाहत यंत्रों और जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश में संगृहीत अड़तालीस यन्त्रों से भिन्न हैं। उपरोक्त दोनों ग्रन्थों में संगृहीत यन्त्र रचनाशैली के आधार पर, चाहे आंशिक रूप से तान्त्रिक परम्परा से प्रभावित रहे हों, किन्तु विषयवस्तु की अपेक्षा से उनका निर्माण जैन परम्परा के आधार पर ही हुआ है। जबकि भैरवपद्मावतीकल्प में संगृहीत सभी यंत्र पूर्णतः तान्त्रिक परम्परा से प्रभावित हैं। इनकी रचना 'जये'; 'जम्भे'; विजये'; 'मोहे'; अजिते'; 'स्तम्भे'; 'अपराजिते'; 'स्तम्भिनी; नामक देवियों तथा बीजाक्षरों के आधार पर ही हुई है। अधिकांश यन्त्रों में तो आकृतिगत समानता भी परिलक्षित होती है। इसके कुछ यन्त्रों की रचना मात्र-मातृकापदों के आधार पर भी हुई है। इनमें से कुछ यन्त्रों में मात्र पंचनमुक्कारो का उल्लेख होने से हम यह कह सकते हैं कि ये यन्त्र जैन परम्परा में ही निर्मित हुये हैं। किन्तु आश्चर्य है कि इनमें किसी भी पंचपरमेष्ठि का उल्लेख नहीं है। पुनः इन यन्त्रों में फलश्रुति के रूप में जिस प्रयोजन के सिद्धि की बात कही गयी है, वह पूर्णतः लौकिक है। इनमें दुष्टजनों से रक्षा, रोगों के उपशमन और उपसर्गों (अनपेक्षित) कष्टों से त्राण दिलाने की ही प्रार्थनाएं हैं। इनमें से कतिपय यंत्र अग्रिम पृष्ठों पर दिए जा रहे हैं
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