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जैन धर्म और तांत्रिक साधना
मथुरा के आयागपट्टः प्राचीनतम् जैन यन्त्र
पूजा यन्त्रों का सबसे प्राचीनतम रूप मथुरा के आयागपट्टों में मिलता हैं। यद्यपि ये आयागपट्ट अन्य पूजा यन्त्रों से कुछ अर्थों में भिन्न हैं, सर्वप्रथम तो यह कि जहां पूजा यन्त्र स्वर्ण, रजत या ताम्रपत्रों पर अंकित होते हैं, वहां ये आयागपट्ट पत्थरों पर ही उत्कीर्ण हैं । दूसरे, पूजा यन्त्रों में सामान्यतया बीजाक्षर, मन्त्र अथवा एक विशिष्ट क्रम में संख्याएं लिखी होती हैं। इन आयागपट्टों में न तो बीजाक्षर अंकित हैं और न ही संख्याएँ। ये मात्र कलात्मक आकृतियां हैं जिनके मध्य में 'जिन' का अंकन है। बीजाक्षरों या मन्त्रों के स्थान पर इन आयागपट्टों में स्वस्तिक, मीनयुगल आदि अष्टमंगल उत्कीर्ण हैं । कलात्मक दृष्टि से इन आयागपट्टों में अष्टमंगल, धर्मचक्र, स्वस्तिक और रत्नत्रय का अंकन प्रमुख रूप से हुआ है। एक आयागपट्ट में चार मीन आकृतियों को जोड़कर अत्यन्त सुन्दर ढंग से स्वस्तिक की रचना की गयी है। इसके अतिरिक्त भी इनकी कलात्मक साज-सज्जा अत्यन्त आकर्षक है। अपनी इन आकृतिगत विशेषताओं के कारण ही हम इन्हें पूजा यन्त्रों का सबसे प्राचीनतम रूप कह सकते हैं । वस्तुतः ये आयागपट्ट जैन कला के प्राचीनतम रूप हैं तथा इनकी योजना जैन अवधारणाओं के परिप्रेक्ष्य में ही हुई है। इन आयागपट्टों पर तान्त्रिक परम्परा का प्रभाव प्रायः नगण्य ही है। मात्र इतना ही नहीं सिद्धचक्र, परमेष्ठि यन्त्र आदि यन्त्रों का विकास जो जैन तान्त्रिक परम्परा में हुआ है उनका मूल स्रोत ये ही आयागपट्ट हैं। पाठकों के अवबोध के लिए हम अग्रिम पृष्ठों में इन आयागपट्टों के कुछ चित्र प्रस्तुत कर रहे हैं
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