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जैनधर्म और तांत्रिक साधना
नवपदवर्त्त
अन्य आवर्तजप
__ शरीर के विभिन्न अंगों में पांच पदों का स्थापन करके भी जप किया जाता है। इसका एक रूप है पद्मावर्त, इसके नमस्कारमंत्र के प्रथमपद 'नमोअरहंताणं' का ब्रह्मरंध्र में, दूसरे पद का ललाट में, तीसरे पद का कंठ में, चौथे पद का हृदय में और पांचवें पद का नाभि कमल में स्थापन करके पंच परमेष्ठि का जप करें। इस पदमावर्त का दूसरा क्रम इस प्रकार है, प्रथम पद ब्रह्मरंध्र में, दूसरा ललाट में, तीसरा चक्षु में, चौथा श्रवण में और पांचवां मुख में स्थापित करके जप करें। तीर्थंकरों के नाम का आवर्तजप
सिद्धावर्त में वर्तमान काल के चौबीस तीर्थंकरों, का जप किया जाता है। दोनों हाथों को मुख के सामने रखकर दोनों हाथों की आयुष्य रेखा को बराबर मिलावें, जिससे सिद्धशिला की आकृति आभासित होने लगे। इसके बाद दोनों हाथों की आठों अंगुलियों के चौबीस पर्यों पर निम्न चित्र के अनुसार चौबीस तीर्थंकरों का 'ॐ हीं श्रीं ऋषभदेवाय नमः, ॐ हीं श्रीं अजितनाथाय नमः' 'ॐ ह्रीं श्रीं संभवनाथाय नमः' आदि का जप करें। आनुपूर्वी
जैन परम्परा में जप की एक अन्य विधि प्रचलित है जिसमें संख्याओं
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