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________________ १६४ जैन धर्म और तांत्रिक साधना वस्तु की बनी हो इतना ही पर्याप्त नहीं है, माला किस अंगुली से और कैसे जपना चाहिए, इसके भी कुछ तांत्रिक विधि-विधान उन्होंने बताये हैं। वे कोई श्लोक उद्धृत करके लिखते हैं-- अंगुष्ठजापो मोक्षाय, उपचारे तु तर्जनी, मध्यमा धनसौख्याय, शान्त्यर्थं तु अनामिका। कनिष्ठा सर्वसिद्धिदा, तर्जनी शत्रु तु नाशये इत्यपि पाठान्तरोऽस्ति हि ।। मोक्ष के लिए अंगूठे से उपचार (व्यवहार) के लिए तर्जनी से, धन और सुख के लिए मध्यमा अंगुली से, शांति के लिए अनामिका से और सब कार्यों की सिद्धि के लिए कनिष्ठा से जाप करें। कहीं-कहीं यह भी पाठान्तर है कि शत्रु नाश के लिए तर्जनी अंगुली से जाप करें। माला दाहिने हाथ में रखनी चाहिए । अंगूठे और तीसरी मध्यमा नामक अंगुली से माला जपना उचित है। दूसरी अंगुली अर्थात् तर्जनी से भूल कर भी माला न फेरें। माला फेरते समय हाथ को हृदय के पास स्पर्श करते हुए रखना चाहिए। माला में जो सुमेरू होता है, उसे लांघना ठीक नहीं है। यदि दूसरी माला फेरनी हो, तो वापस माला बदल कर फेरनी चाहिए। करावर्तजप हाथ की अंगुलियों के पर्यों के द्वारा जप करना करावर्तजप कहा जाता है। आवर्त से जप करना माला की अपेक्षा भी श्रेष्ठ है। प्राचीन काल में कर-माला से जप किया जाता था, क्योंकि प्रथमतः यह मन की एकाग्रता में अधिक सहायक होता है दूसरे अपरिग्रही जैन साधु के लिए यही सर्व सुलभ मार्ग है। कर-माला के आवर्त छः हैं- १. साधारण आवर्त, २. शंखावर्त ३. नवपद आवर्त ४. ही आवर्त, ५. नद्यावर्त ६. ॐ आवर्त । उदाहरण के लिए हम साधारण आवर्त का परिचय करा देते हैं। दाहिने हाथ की कनिष्ठा अंगुली के नीचे के पौरवें से. जपना प्रारम्भ करें। इस प्रकार क्रम से कनिष्ठा के तीनों पौरवे, चौथा अनामिका के ऊपर का, पाँचवां मध्यमा के ऊपर का, छठा तर्जनी के ऊपर का, सातवां तर्जनी के मध्य का, आठवां तर्जनी के नीचे का, नौवां मध्यमा के नीचे का, दशवां अनामिका के नीचे का, ग्यारहवां अनामिका के मध्य का, बारहवां मध्यमा के मध्य का इस प्रकार बारह जप हुए। इस प्रकार नौ बार जप कर लेने से एक माला पूरी हो जाती है। इसी प्रकार अन्य आवर्तों को भी नीचे के चित्रों से समझ लेना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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