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________________ १४४ जैनधर्म और तान्त्रिक साधना स्त्री आकर्षण संबंधी मंत्र (अ) ॐ नमो भगवति! अम्बिके! अम्बालिके! यक्षिदेवि! यूँ यौँ ब्लैं हस्क्लीं ब्लं हसौं र र र रां रां नित्यक्लिन्ने! मदनद्रवे! मदनातुरे! ही क्रों अमुकां वश्याकृष्टिं कुरु कुरु संवौषट् ।। ___ ॐ हीं नमो भगवति! कृष्णमातङ्गिनि! शिलावल्ककुसुमरूपधारिणि! किरातशबरि! सर्वजनमोहिनि! सर्वजनवशंकरि! ह्रां हों हं हैं। ह: अमुकीं मम वश्याकृष्टिं कुरु कुरु संवौषट् ।। ये मन्त्र भी अन्य परम्परा से गृहीत हैं, जैन परम्परा में निर्मित नहीं हैं। वशीकरण मंत्र (अ) ॐ नमो भगवदो अरिट्ठनेमिस्स बंधेण बंधामि रक्खसाणं भूयाणं खेयराणं चोराणं दाढाणं साइणीणं महोरगाणं अण्णे जे के वि दुट्ठा संभवंति तेसिं सव्वेसिं मणं मुहं गई दिढिं बंधामि धणु धणु महाधणु जः जः ठः ठः ठः हुं फट् ।। (जैन परम्परा में निर्मित) ॐ हक्ली हीं ऐं नित्यक्लिन्ने! मदद्रवे! मदनातुरे! ममामुकीं! वश्याकृष्टिं कुरु कुरु वषट् स्वाहा।। (अन्य परम्परा से गृहीत) ॐ ऐं ही देवदत्तस्य सर्वजनवश्य कुरु कुरु वषट् ।। (अन्य परम्परा से गृहीत) ॐ भ्रम भ्रम केशि भ्रम केशि भ्रम माते भ्रम माते भ्रम विभ्रम विभ्रम मुह्य मुह्य मोहय मोहय स्वाहा।। (अन्य परम्परा से गृहीत) ज्ञातव्य है कि मारण, मोहन और उच्चाटन सम्बन्धी जैन परम्परा में निर्मित मंत्र मुझे देखने को नहीं मिले। मेरी दृष्टि में इसका कारण यह है कि जैन आचार्यों ने इस प्रकार के हिंसक वृत्ति प्रधान मंत्रों की रचना को अपनी परम्परा के प्रतिकूल माना हो। यद्यपि जैसा कि पूजाप्रकरण में उल्लेख किया गया है, ज्वालामालिनी और पद्मावती की अर्चना सम्बन्धी कुछ स्तोत्रों में हन् हन् दह दह आदि शब्दों की प्रतिध्वनि अवश्य ही मिलती है, किन्तु वास्तविकता तो यह है कि ये स्तोत्र तांत्रिक परम्परा से पूर्णतः प्रभावित हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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