SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११९ मंत्र साधना और जैनधर्म ॐ ह्रीं हां एवं मए अभित्थुआ, विहुयरयमला पहीणजरमरणा । चउवीसंपि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु स्वाहा! विधि-इस मन्त्र का जप ५५०० बार करना चाहिए। पूर्वदिशा की ओर हाथ जोड़ कर खड़े हों, तथा मुख ऊपर आकाश की तरफ करें। इससे सब प्रकार का सुख मिलेगा एवं सबको वल्लभ यानी प्रिय लगेंगे। (इति पंचम मण्डल) ॐ अंबराय कित्तय वंदिय महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा। आरोग्ग-बोहिलाभं, समाहिवरमुत्तमं दिंतु स्वाहा! विधि- इस मन्त्र को उत्तरदिशा की ओर मुँह करके १५००० बार जपने से सत्-कार्यों में वृद्धि होती है, देवगण भी प्रसन्न होते हैं, जय-जयकार हो सब प्रकार का सुख मिलता है और अन्त में समाधिमरण का गौरव प्राप्त होता है। (इति षष्ठ मण्डल) ॐ हीं एँ ओं जी जौं चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहिय पयासयरा। सागर-वरगंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु। मम मनोवांछितं पूरय-पूरय स्वाहा! विधि- इस मन्त्र का पूर्वदिशा की ओर मुँह कर १००० जप करने से सब प्रकार से मन की आशा पूर्ण होती। यश और प्रतिष्ठा बढ़ती है। व्यक्ति सब लोगों के लिए पूजनीय हो जाता है। (इति सप्तम मण्डल) सूरिमंत्र या गणधर वलय जैनों में वर्धमान विद्या के समान ही सूरिमंत्र की भी साधना की जाती है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में जहां सामान्य मुनि के लिए वर्धमान विद्या की साधना का निर्देश है वहाँ आचार्य के लिए सूरिमंत्र की साधना को आवश्यक माना गया है। वस्तुतः सूरिमंत्र भी वर्धमान विद्या का ही एक विकसित रूप है। सूरिमंत्र में विभिन्नलब्धिधारियों को नमस्कार किया गया है। सूरिमंत्र के सम्बध में भी अनेक प्रस्थान या आम्नायें प्रचलित हैं जिनमें पदों या वर्गों की संख्या को लेकर अलग-अलग परम्पराएँ हैं। फिर भी सामान्य रूप से सभी आम्नाय के सूरिमंत्रों में लब्धिधारियों (ऋद्धिधारियों) के प्रति नमस्कार रूप मंत्र ही होता है। मन्त्रराज रहस्य में सूरिमंत्र के ११ आम्नायों का उल्लेख हुआ है। आम्नायभेद से इसमें चारलब्धि पदों से लेकर पचास लब्धिपदों तक की संख्या मिलती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy