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(७) ॐ पासे सुपासे अइपासे सुहपासे महापासे ठः ठः स्वाहा ।
जैनधर्म और तान्त्रिक साधना
इस विद्या से शरीर को अभिमंत्रित करके सोने पर स्वप्न में भावी शुभ - अशुभ का बोध हो जाता है तथा मार्ग में सर्प, सिंह आदि उसका स्पर्श भी नहीं करते हैं।
(८) ॐ चंदे सुचंदे चन्दप्पहे सुप्पहे अइप्पहे महाप्पहे ठः ठः स्वाहा ।
इस विद्या से सात बार अभिमंत्रित जल से मुँह धोने पर सौन्दर्य में अभिवृद्धि होती है और इससे अभिमंत्रित दर्पण जिसे दिखाया जाता है वह मनुष्य वश में हो जाता है ।
(६) ॐ पुप्फे पुप्फे महापुप्फे पुप्फसु पुप्फदंते ठः ठः स्वाहा ।
पत्र, पुष्प और फल के द्वारा सात जिनेश्वरों का १०८ बार जप करने से यह विद्या सिद्ध होती है और इससे अभिमंत्रित पुष्प, फल आदि जिसे दिये जाते हैं, वह वश में हो जाता है।
(१०) ॐ सीयले पासे पसंते निव्वुए निव्वाणे निव्वुइति नमो भगवईए ठः ठः
स्वाहा ।
इस विद्या से एक युग तक जल को अभिमंत्रित करके उस अभिमंत्रित जल को पीड़ित स्थान पर सिंचन करने से वह रोग मिट जाता है।
(११) ॐ सिज्जंसे सिज्जसे सुसिज्जसे सुसिज्जसे सेयंकरे महासेयंकरे सुप्पहंकरे ठः ठः स्वाहा ।
अन्धेरी रात्रि में इस विद्या का १०८ बार जप करने से रोग का निवारण होता है ।
(१२) ॐ वासुपुज्जे वासुपुज्जे अइपुज्जे पुज्जारिहे ठः ठः स्वाहा ।
इस विद्या का १०८ बार जप करके सोने पर स्वप्न में भावी शुभाशुभ का बोध हो जाता है ।
(१३) ॐ अमले विमले कमले कमलिणी निम्मले ठः ठः स्वाहा ।
इस विद्या के द्वारा सात बार अभिमंत्रित पुष्प से जिन प्रतिमा का पूजन करने
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