SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९२ जैनधर्म और तान्त्रिक साधना (१६) अकारध्यान और उसका फल आदिमन्त्रार्हतो नाम्नोऽकारं पञ्चशतप्रमान्। वारान् जपन् त्रिशुद्ध्या यः स चतुर्थफलं श्रयेत् ।। इस मन्त्र का ५०० बार जप करने से उपवास का फल होता है। (२०) पञ्चवर्णमयीविद्या 'हाँ ह्रीं हूँ ह्रौं हः। अथवा- 'अ सि आ उ सा। संपुटे तु- 'ॐ हाँ ह्रीं हूँ ह्रौं ह्र: अ सि आ उ सा नमः। अथवा'ॐअसिआउसा नमः। अथवा- 'ॐ ह्रां ह्रीं हूँ ह्रौं हः।' इति भेदः। माहात्म्यम्-- ‘पञ्चवर्णमयीं विद्यां, पञ्चतत्त्वोपलक्षिताम्। मुनिवरैः श्रुतस्कन्धाद, बीजबुद्ध्या समुद्धृताम् ।। फलम्- 'बन्दिमोक्षे च प्रथमो, द्वितीयः शान्तये स्मृतः । तृतीयो जनमोहार्थे, चतुर्थः कर्मनाशने।। पञ्चमः कर्मषट्केषु, पञ्चैवं मुक्तिदाः स्मृताः । तृतीयनियताभ्यासाद्, वशीकृतनिजाशयः ।। प्रोच्छिनत्त्याशु निःशङ्को, निगूढं जन्मबन्धनम् ।' इस विद्या के जप से बन्धन से मुक्ति होती है, शान्ति की प्राप्ति होती है, लोग सम्मोहित होते हैं, कर्म का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। (२१) मुक्तिदाविद्या 'चत्तारि मंगलं । अरिहंता मंगलं । सिद्धा मंगलं । साहू मंगलं । केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारि लोगोत्तमा। अरिहंत (ता) लोगो (गु) त्तमा। सिद्ध (द्धा) लोगो (गु) त्तमा। साहु लोगो (गु) त्तमा। केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगो (गु) त्तमो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy