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________________ मात्र काल्पनिक हैं। दूसरी ओर यह भी सत्य है कि पुराणों और चरितकाव्यों में काल्पनिक अंश इतना अधिक है कि उसमें से ऐतिहासिक तथ्यों को निकाल पाना एक दुरूह कार्य है। जो स्थिति हिन्दू पुराणों की है वही स्थिति जैन पुराणों और चरित ग्रंथों की भी है। यह भी सत्य है कि जैन इतिहास के लेखन के लिए हमारे पास जो आधारभूत सामग्री है वह इन्हीं ग्रंथों में निहित है, किन्तु इस सामग्री का उपयोग अत्यन्त सावधानीपूर्वक करना होगा। जैन इतिहास के अध्ययन के स्रोत (क) जैन आगम, आगमिक व्याख्याओं एवं पुराणों के कथानक पुराणों के अतिरिक्त आगमिक व्याख्याओं विशेषतः नियुक्ति, भाष्यों और चूर्णियों में भी अनेक ऐतिहासिक कथानक संकलित हैं किन्तु उनमें भी वही कठिनाई है जो जैन पुराणों में है। ऐतिहासिक कथानक और काल्पनिक कथानक दोनों एक-दूसरे से इतने मिश्रित हो गए हैं कि उन्हें अलग-अलग करने में अनेक कठिनाइयाँ हैं। सत्य तो यह है कि एक ही कथानक में ऐतिहासिक और काल्पनिक दोनों ही तत्त्व समाहित हैं और उन्हें एक-दूसरे से पृथक् करना एक जटिल समस्या है। फिर भी उनमें जो ऐतिहासिक सामग्री है उसका प्राचीन भारतीय इतिहास की रचना में उपयोग महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक है। आगमिक व्याख्याओं में अधिकांश कथानक व्रतपालन अथवा उसके भंग के कारण हुए दुष्परिणामों को अथवा किसी नियम के सम्बन्ध में उत्पन्न हुई आपवादिक स्थिति को स्पष्ट करने के लिए दिए गए हैं। ऐसे कथानकों में चाणक्य कथानक, भद्रबाहु कथानक, कालक-कथा, भद्रबाहु द्वितीय और वाराहमिहिर आदि के कथानक ऐसे हैं जिनका ऐतिहासिक महत्त्व है। मरणविभक्ति तथा भगवती आराधना की मूल कथाओं और उन कथाओं को लेकर बने बृहद् आराधना कथाकोश आदि का भारतीय इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्व है। इस सम्बन्ध में विस्तृत चर्चा आगे करेंगे। जहाँ तक अर्धमागधी आगम साहित्य और आगमिक व्याख्या साहित्य का प्रश्न है उसमें ऐतिहासिक सामग्री न केवल प्रचुरता में उपलब्ध है, अपितु वे भारतीय इतिहास के अनेक अनुद्घाटित तथ्यों को उजागर करती हैं। सर्वप्रथम आचारांगसूत्र को ही लें। यद्यपि यह एक उपदेश एवं आचारप्रधान ग्रन्थ है, फिर भी इसके प्रथम श्रुतस्कन्ध के नौवें उपधान-श्रुत नामक अध्याय में महावीर का जो जीवनवृत्त उल्लेखित है, उसकी वस्तुनिष्ठ सत्यता से इन्कार नहीं किया जा सकता है यद्यपि इसमें मूलतः महावीर की साधना काल का ही वर्णन है, यह महावीर के गृही जीवन और संघ स्थापना के पश्चात् के जीवनवृत्त का वर्णन नहीं करता है, फिर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001787
Book TitleJain Dharma Darshan evam Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size13 MB
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