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क्या तत्त्वार्थसूत्र स्त्रीमुक्ति का निषेध करता है? : ६५
आदरणीय भाई रतनचन्द्रजी जैन ने तत्त्वार्थसूत्र में स्त्रीमुक्ति निषेध के सम्बन्ध में जो नौवें अध्याय का सूत्र प्रस्तुत किया है वह है- शुक्ले चाद्ये पूर्वविदः। वे लिखते हैं कि 'तत्त्वार्थसूत्रकार' ने इस सूत्र के द्वारा भी स्त्रीमुक्ति का निषेध किया है, क्योंकि सूत्र में कहा गया है कि चार प्रकार के शुक्लध्यानों में से प्रथम दो ध्यान पृथक्त्व-वितर्क-विचार और एकत्व-वितर्क-अविचार, पूर्वविद् अर्थात् चतुर्दश पूर्वो के ज्ञाता श्रुतकेवली को होते हैं तथा दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों के अनुसार स्त्री को ११ अंगों का ज्ञान ही हो सकता है भले ही वह आर्यिका हो। इससे स्पष्ट है कि उसे चतुर्दश पूर्वो का ज्ञान नहीं हो सकता। फलस्वरूप उसको शुक्लध्यान के आदि के दो ध्यान भी नहीं हो सकते और उनके अभाव में उसे केवलज्ञान होना असंभव है।
उनके इस तर्क का आधार यह है कि 'चतुर्दश पूर्वो के ज्ञान के बिना शुक्लध्यान के प्रथम दो भेद भी संभव नहीं हैं, चूँकि स्त्री दृष्टिवाद का अध्ययन नहीं कर सकती अत: उसमें दृष्टिवाद के ज्ञान का अभाव है, इसलिए वह पूर्वविद् भी नहीं है। पूर्वो के ज्ञान का अभाव होने से उसमें शुक्लध्यान के प्रथम दो चरण नहीं होंगे तथा शुक्लध्यान के अभाव में केवलज्ञान भी संभव नहीं है और केवलज्ञान के अभाव में उसकी मुक्ति भी संभव नहीं है।'
प्रथम तो यह कि उन्होंने इसमें तत्त्वार्थसूत्र का सन्दर्भ देते हुए जो सातवें अध्याय के ३९वें सूत्र का उल्लेख किया है वह भी तर्कसंगत नहीं है। भाष्यमान पाठ में सूत्र का प्रथम अंश 'शुक्ले चाद्ये' इतना ही मिलता है 'पूर्वविदः' यह भिन्न सूत्र है। भाष्यमान मूलपाठ के अनुसार शुक्लध्यान के प्रथम दो चरण पूर्ण होने पर उपशान्त कषाय अथवा क्षीण कषाय अवस्था की प्राप्ति होती है। यहाँ इस सूत्र में शुक्लध्यान के प्रथम दो चरणों का सम्बन्ध कषाय की उपशमता या क्षीणता से है न कि पूर्वविद होने से। यद्यपि अगला सूत्र पूर्वविद् है, किन्तु वह विकल्प रूप ही है कि शुक्लध्यान के दो चरण को प्राप्त व्यक्ति 'पूर्वविद्' हो भी सकता है अथवा नहीं भी। इस प्रकार इस सूत्र में शुक्लध्यान के लिए पूर्वविद् होना यह आवश्यक नहीं है, किन्तु उपशान्त कषाय या क्षीण कषाय होना आवश्यक है। अतः उनका यह तर्क की स्त्री पूर्वविद् नहीं होती है, इसलिए वह मुक्त नहीं हो सकती है, समुचित नहीं है। मुक्त होने के लिए मात्र क्षीण कषाय होना आवश्यक है न कि पूर्वो का ज्ञान।
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