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Nasaketari Kathā
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हिवै असत्रीरा चैन कहुं छु : भरतार पैली जीमै, सो सुंषणी कहीजै छै*।' भरतार सुं धोह करै, सो कोयल होय ।' सासू सु लडै, तिका टीटोडी होय ।' नित्यरी कलहो करै, सो कागली होय ।7 भरतार सुं कांमण करै, सो मीडकी होय; पछै जनम जनम वेस्या होय ।'
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ब्रामण क्रीया हीण होय, सुंच न रहै, 10 काग कुतरीरी जौन पावै । " फूल, वड, पीपल काटै, सो बोलो होय । 12 दांन देतां वरजै सो आंधो साप होय । 1 3 ध्रोही होय, सो भिल होय । 14 गर्भपाती होय, सो कसाही होय * ।'' मिनष देह पायनै, श्रीपरमेस्वरजीरी, महादेवजीरी, वासदेवजीरी, माताजीरी, तीरथरी, गुररी, मातापितारी, देवी देवतांरी सेवा न करै*, सुंच मै न रहै, सो जनम जनम नरक मै पडै ।" इतरां देवतांरी सेवा करै, तीरथ करै, व्रत करै, दांन पुन्य करै, सो मनुष मुगतगांमी होय।'17 इति श्रीसतरमोध्याय संपूर्णं । '
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रषीस्वरोवाच, ' राजा जनमैजी नै> कहयो छै*2
'नासकेत जमलोक जायनै, पाछो आयों छै । पितानै रषीस्वरांनै ओ विरतंत सूंणायो । सकोई सांभलनै राजी हूवा * । नासकेतनै रषीस्वर कहै छै* : ' आ कथा थां विगर कुंण सुणावै* ! धन थे ! उदालकजी
धन्यः;
जिणरै थां सरीषा पुत्र* !''
तितरै नासकेत कहै छै* : 10 आ कथा सांभलै, सो नरक जाय नही* : '' मुगतरो इधकारी होय ! 12 जम रा[a] जाजीरो हुंकम छै । 13 आ कथा पापमोचनी छै* । 14 सुणै, सांभलै सो बैकुंठ जाय !' 15
नासकेत रषीस्वरां ईसो जिम लोकरो विरतंत सुणायो ।" पाप, पुन्य, धरमी, दुष्टातमा त्यांरी वातां कही। 7
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इति श्रीनासकेतरी कथा संपूर्णं । ' लिषतं शिववर्द्धन, जैतारण मद्धे, सं 1786 रा भाद्रवा वदि 1 दिने । "
Notes and References
Chapter I
1. in the shape of the
mutilated diagram : see
note ।।
9. जनसै ॥
14. om. at the end of the
line II
उदालकजी corr. from 'की ॥
उदा० ।। at the end of the
line 11
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15.
46.
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