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________________ Jaina Sāhitya aur Mahākāla-Mandira 257 महाकाल श्मशान-भूमि का अधिष्ठाता होने से इसी के नाम से महाकालवन का नाम उत्पन्न होना स्वाभाविक है। इसके अतिरिक्त 'महाकालवन' शब्द स्वयं भी जैनागम के अन्तर्गत 'अन्तगदसाओ' ( 3.8 ) नामक ग्रन्थ में विद्यमान है। वहाँ श्रीकृष्ण के समकालीन बाईसवें तीर्थङ्कर श्रीनेमिनाथ के समय की द्वारका नगरी के पास 'महाकालवन' नामक एक श्मशान का विद्यमान होना कथित है, तो उज्जैन के 'महाकालवन' के नाम की व्युत्पत्ति वीर-निर्वाण के पश्चात् हुए अवन्तिसुकुमाल की मृत्यु के प्रसंग पर से होना असंगत ज्ञात होती है। इससे प्रस्तुत शब्द-व्युत्पत्ति को कवि-कल्पना शक्ति के उसी क्रीड़ा-विशेष में गिनना अनुचित नहीं होगा, जिसके अनुसार संस्कृत 'ब्राह्मण' शब्द के प्राकृत रूपान्तर 'माहण' की व्युत्पत्ति ‘मा हणसु' (अर्थात् 'मत मारो' ) इस वाक्य से बताई गई ( पउमचरिय 4.84 )25 और अन्य अनेक भाषाशास्त्र-विरुद्ध शब्दव्युत्पत्तियाँ भी प्राचीन ग्रन्थों में कही गई हैं। अब रहा महाकालेश्वर मन्दिर ही की जैनमुनि स्मारक-मन्दिर से कथित उत्पत्ति का प्रश्न। वह इस कारण से कुछ विकट ज्ञात होता है कि अभी उक्त मुनि-स्मारक-मन्दिर में से कुडुंगेश्वर-कुटुम्बेश्वर महादेव ही के मन्दिरों का क्रमशः अनुमान है कि प्रस्तुत समय में कुडुंगेश्वर-कुटुम्बेश्वर महादेव और महाकालेश्वर महादेव एक थे। अपनी सन्मति-तर्क भूमिका में (पृ. 45 ) पं. श्री सुखलाल जी और श्री बेचरदास जी ने भी 'कुडंगेश्वर' और 'महाकाल' के अभेद का अनुमान प्रगट किया, परन्तु उसका समर्थन करने को वे उद्यत नहीं हुए। कहाँ तो कुडंगेश्वर-कुटुम्बेश्वर जैसे साधारण श्रेणी के नाम और कहाँ जगत्प्रसिद्ध महाकालेश्वर, जो भारतवर्ष के बारह ज्योतिर्लिङ्गों में एक हैं और जिनका नाम तक अत्यन्त आदरणीय माना जाता है। फिर भी इस ज्योतिर्लिंगरूपी महाकाल के अतिरिक्त, महाकाल नामक एक अज्ञात अरण्य-देव भी विद्यमान है, जैसा कि श्री शरतचन्द्र मित्र महाशय ने अपने एक निबन्ध में (इण्डियन कल्चर, अंक 4, पृ. 427 आदि ) बताया है। यह महाकाल पूर्व और पश्चिम भारत की कुछ जंगली जातियों से पूजित है। उनके नाम से खाये हुए सौंगन्ध के भंग का परिणाम भयंकर मृत्यु और उनकी उपासना का फल कुटुम्ब आदि परिवार की वृद्धि माना जाता है। गहरे जंगलों में उनकी पूजा-सेवा होती है। अरण्य के इस अज्ञात महाकाल और अवन्ति के जगत्प्रसिद्ध महाकाल, दोनों के सामान्य मूलभूत किसी एक आदि महाकाल की कल्पना अवश्य की जा सकती है, जो द्वारका और उज्जैन के आसपास के जंगलों में पूजित होकर, वहाँ के 'महाकालवन' के नामोत्पादक हुए। इस महाकाल और पुराण में उल्लिखित कुटुम्बेश्वर के गुणों में और आराधना-फल में इतना सादृश्य है कि कुडंगेश्वर-कुटुम्बेश्वर को महाकालेश्वर का नामान्तर माना जा सकता है और महाकालवन के जिस मन्दिर में श्री विक्रमादित्य और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001785
Book TitleCharlotte Krause her Life and Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages674
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_English, Biography, & Articles
File Size11 MB
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