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________________ Jaina Sāhitya aur Mahākāla-Mandira 255 ईसा के पूर्व किसी समय में गन्धवती के पास वर्तमान सिंहपुरी के अन्दर, श्री अवन्तिसुकुमाल मुनि का स्मारक मन्दिर विद्यमान था, जिसमें मुनि का स्तूप और श्रीपार्श्वनाथ की एक प्रतिमा स्थापित थी। आसपास श्मशान-भूमि और निर्जन जंगल होने के कारण जैनियों ने मूर्ति की पूजा-सेवा की उपेक्षा की। स्तूप खण्डित और मन्दिर उजाड़ पड़ा रहा। उसमें (कदाचित् कुछ जीर्णोद्धार या अन्य परिवर्तन करते हुए ) हिन्दुओं ने श्मशानों के अधिष्ठाता के उपलक्ष्य में एक लिंग स्थापित किया। तीर्थङ्कर-प्रतिमा लुप्त हो गई। मन्दिर हिन्दू-मन्दिर बना। स्थान के आधार पर उसको 'कुडंगीसर' या 'कुडंगेश्वर', अर्थात् 'गहरे जंगल का ईश्वर' यह नाम चल पड़ा। इस कुडंगेश्वर महादेव के मन्दिर में किसी एक उदार विचार वाले, 'विक्रमादित्य' की उपाधि धारण करने वाले गुप्त सम्राट के समय और उपस्थिति में श्री सिद्धसेन दिवाकर का आगमन और प्राचीन पार्श्वनाथ-प्रतिमा का प्रादुर्भाव - चाहे चमत्कारिक या प्राकृतिक रीति से - हुआ। उक्त प्रतिमा ‘कुडंगेश्वर-पार्श्वनाथ' के नाम से पुनः प्रतिष्ठित होकर एक जैनतीर्थ का केन्द्र बनी, जिसकी उपासना के लिए राज्य की ओर से कुछ गाँव प्रदान किये गए। पश्चात् उक्त मन्दिर फिर हिन्दुओं के हाथ में आया। कुडंगेश्वर नाम उसके साथ जुड़ा हुआ तो था परन्तु उस नाम को व्युत्पत्त्यर्थ की दृष्टि से कल्पनाशक्ति के अधिक अनुकूल बनाने के उद्देश्य से, जिस न्याय से 'करण' का 'कर्ण', 'सिप्रि' की 'शिवपुरी', 'नाचिकेतस्' का 'नासकेत', 'तैलंग' का 'त्यक्तलंक' इत्यादि कृत्रिम रूपान्तर गढ़े गए, उसी न्याय के अनुसार वह रूप मिटाया जाकर 'कुटुम्बेश्वर' शब्द बनाया गया, जो पुराण में ( जैसा ऊपर बताया जा चुका है ) प्रयुक्त होकर आज तक प्रचलित है। इस मन्दिर की उत्पत्ति और प्रारम्भिक इतिहास का वृत्तान्त जैन साहित्य में और मध्यकालीन स्थिति का वर्णन पुराण में उपलब्ध रहा। फिर भी इतनी शताब्दियों के क्रम में उसका नाश, जीर्णोद्धार, धर्म-परिवर्तन और कदाचित् स्थानान्तर भी कितने बार और कब-कब हुए, इन रहस्यों की रक्षिका सिंहपुरी, गन्धवती घाट और महाकालेश्वर मन्दिर की सीमा के अन्तर्गत भूमि ही है, जहाँ कभी खोदने पर कदाचित् किसी दिन उस पर प्रकाश पड़ेगा। ___ मन्दिर का आधुनिक आकार पेशवा या सिन्धिया काल से अधिक प्राचीन नहीं हो सकता। वह उसके छज्जे में जड़े हुए एक शिलालेख से देखा जा सकता है, जो एक टूटी हुई इमारत का एक भग्नावशेष जान पड़ता है। इस शिलालेख के अनुसार वह इमारत संवत् 1982 में बनाई गई या उसका जीर्णोद्धार के प्रसंग पर वह शिलालेख '84 महादेव' के पूर्वोक्त शिलापट्ट के साथ खण्डहरों में से निकाला जाकर दोनों वस्तुओं को अपने-अपने आधुनिक स्थान में जड़ाया गया होगा। उसी समय से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001785
Book TitleCharlotte Krause her Life and Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages674
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_English, Biography, & Articles
File Size11 MB
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