SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 292
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Jaina Sāhitya aur Mahākāla-Mandira 247 चुका था, अर्थात् वीर-निर्वाण-संवत् 609 अथवा विक्रम-संवत् 139 के पश्चात्। उससे विक्रम संवत् 1 में श्वेताम्बरोपासकों की विद्यमानता नहीं मानी जा सकती। शंका का एक तीसरा स्थान 'श्री कुडुंगेश्वर-ऋषभदेव' शब्द है, जिसका शासनपट्टिका में भी प्रयुक्त होना कथित है। ऊपर इस बात का निर्णय किया जा चुका है कि जो जिनबिम्ब अवन्तिसुकुमाल के स्मारक मन्दिर में स्थापित था, वह 'विविध-तीर्थकल्प' को छोड़कर सभी अन्य ग्रन्थों के एकमुखी साक्ष्य के अनुसार, श्री पार्श्वनाथ ही का था, और किसी लेखक के भ्रम से 'वामेय' का 'नाभेय' बना, जिस भ्रम के परिणामस्वरूप उक्त ग्रन्थ में पार्श्वनाथ-बिम्ब का स्थान ऋषभदेव के बिम्ब ने लिया था। यदि प्रस्तुत वर्णन प्रामाणिक होता तो उसमें 'कुडुंगेश्वर-ऋषभदेव' के स्थान पर 'कुडुंगेश्वर-पार्श्वनाथ' ही का उल्लेख होना चाहिए था, वह निर्विवाद है। शासनपट्टिका को छोड़कर भी प्रस्तुत तीर्थकल्प के अन्य स्थानों पर शंका के कारणों का अभाव नहीं है। उनमें से एक यह है कि उसके एक पद्य में प्रस्तुत प्रतिमा को चारणमुनि श्री वज्रसेन के हाथ से प्रतिष्ठित बताया जाता है। यथा : श्वेताम्बरेण चारणमुनिनाचार्येण वज्रसेनेन । शुक्रावतारतीर्थे श्रीनाभेयः प्रतिष्ठितो जीयात् ।। 1 ।। अर्थात् "शक्रावतार तीर्थ पर श्वेताम्बर चारणमुनि आचार्य वज्रसेन द्वारा प्रतिष्ठित श्री ऋषभदेव जयवन्त हों।" _श्री वज्रसेन सूरि एक प्रसिद्ध श्वेताम्बर आचार्य थे जिनका देहान्त वीरनिर्वाण-संवत् 620 अथवा विक्रम संवत् 150 में माना जाता है। अर्थात् यदि प्रस्तुत पद्य यहाँ अपने मूल स्थान पर समझा जाय तो वह उपर्युक्त शासनपट्टिका के समयनिर्देश से बाधित है। परन्तु इसी वृत्तान्त के सम्बन्ध के एक अन्य पद्य में मूर्ति की प्रतिष्ठा श्री सिद्धसेन दिवाकर ही का कार्य बताया जाता है। यथा : उद्व्यूढपाराञ्चितसिद्धसेन दिवाकराचार्यकृतप्रतिष्ठः । श्रीमान् कुडुंगेश्वरनाभिसूनुर्देवः शिवायारतु जिनेश्वरो वः ।। 1 ।। अर्थात् “श्रीमान् कुडुंगेश्वर ऋषभदेव जिनेश्वर जिनकी प्रतिष्ठा पाराञ्चित ( नामक प्रायश्चित्तविशेष ) उद्वाहन करने वाले आचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने की, तुम्हारा कल्याण करें ।। 1 ।।" __ इन दो उल्लेखों में यह अन्तर भी है कि दूसरे पद्य में दिया हुआ 'कुडुंगेश्वर' नाम दूसरे में नहीं पाया जाता है। इसलिये ऐसा माना जा सकता है कि पहला पद्य अन्य सम्बन्ध का होकर किसी लिखने वाले की भूल से किसी अन्य ग्रन्थ में से उद्धृत किया गया होगा। कदाचित् उस पद्य में उल्लिखित 'शक्रावतारतीर्थ' और उज्जैन से विशेष सम्बन्ध रखने वाला ‘चक्रतीर्थ' इन नामों के सादृश्य के आभास से ऐसा हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001785
Book TitleCharlotte Krause her Life and Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages674
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_English, Biography, & Articles
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy