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पर्वतिथिक्षयवृद्धिप्रश्नोत्तरविचार महाराजोए गूंथेला सूत्रो प्रमाणे क्रिया करे छे अने खरेखर चारित्र पाळे छे तेओज खरेखरा संयमवंत छे-तेनेज मोक्षमार्गना साचा पथिक जाणवा.
नागपुरी तपागच्छीय श्री रत्नशेखर सूरिजी 'संबोधसत्तरी' नी पांत्रीशमी गाथामां जणावे छे के
आगमं आयरंतेणं, अत्तणो हियकंखिणो । तित्थनाहो गुरु धम्मो, सव्वे ते बहुमन्निया ॥ __ आत्म-कल्याणार्थी पुरुषे आगमना रहस्यनु आचरण करवापूर्वक तीर्थकर श्री अरिहंत भगवंत, सद्गुरु अने केवली-भाषित धर्म ए सर्वर्नु अत्यंत आदरपूर्वक बहुमान करवं, तेने अंगीकार करवो.
अत्यंत विषम एवा आ दूषमकाळमां-कलिकाळमां श्री जिनागमोज परमालंबनभूत छे. जिनागमो न होत तो अनाथ एवां आपणी शी दशो थात ? माटे परम पुण्योदये प्राप्त थयेल पंचांगीने मान्य राखी शास्त्रविहित आचरण करवं एज भवभीरु प्राणी माटे उचित छे.
प्र० २७-नवा पंथवाला कहे छे के बीज पांचम आदि बार पर्व तिथिनी क्षयके वृद्धिमा पूर्वनी अपर्व तिथिनी क्षयके वृद्धि करो छो तो पछी कल्याकनी तिथिओ पण पर्व तिथि कहेवाय छे तो ते तिथिओनी क्षयके वृद्धिमा पूर्वनी तिथिओनी क्षयके वृद्धि केम मानता नथी ? _____30-बीज पांचम आठम आदि बार पर्व तिथिओ क्षेत्रने आश्रिने पंदर कर्म भूमिमां अने कालने आश्रिने भूतभविष्य अने वर्तमान त्रणे कालमां नियत एटले एक सरखी
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