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★ रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★ ६. हीरा सर्वोत्तम रत्न (Diamond)
हीरा रत्न का स्वामी शुक्र ग्रह है। इसे चन्द्रमणि भी कहते हैं । हिन्दी में हीरा, फारसी में आलीमास, महासख्त संग कहते हैं। पृथ्वी के विभिन्न भागों पर पड़े बाले के सिर खण्डे से बने हीरा अनेक रंग और आभा लिए हुए है। अनेक देवी देवताओं ने इन्हें अपनी इच्छा के अनुसार लाल, पीले, हरे, नीले, काले, सफेद हीरे उठा लिए। इसी तरह अन्यान्य सुर, नाग, यक्ष गन्धर्षों ने जैसा अच्छा लगा उठा लिया। देव, दानव, एवं सर्पो ने इस हीरे को उठा कर स्वर्ण शैल पर प्रकाशित किया। शेष पृथ्वी पर गिरा हीरा आठ दिशाओं की आठ खानों में युग-युग प्रमाण से प्रकट हुआ। सतयुग में यह 'हेमज' नाम से मातंग देशों में, त्रेतायुग में उत्तर दिशा में पिण्डी सोरठ देश में, द्वापर युग में पश्चिम दिशा में वेणु मुरारा और कलियुग में दक्षिण दिशा में प्रकट हुआ। जहाँ पर भाग्यवान लोग हों वहाँ इन रत्नों की खान होती है।
हीरे के भेद-हीरा के अनेक भेद कहे हैं। वे उसकी छाया, रंग और वर्ण भेद से हुये हैं। इनमें दधि, दुग्ध, चाँदी, स्फटिक, जल, विद्युत्प्रभा, चन्द्र बगुला, हंस के पंख समान जो सफेद हीरा हो उसे हीरा पानी कहा जाता है। जो हीरा कमल पुष्प, कनेर पुष्प, अनार, गुलाबी, लालड़ी छवि का हो वह कमलपति कहलाता है। सिरस, हरा, धानी, जलंशरद आदि रंगो वाला हीरा वनस्पति कहलाता है। नीलकंठ, अलानी, पुष्प के समान वज्र नील कहलाता है। गेंदा, पुखराज, चम्पावती गुलदावदी, बन्सती रंगवाला हीरा होता है। काले रंग का हीरा श्यामवज्र कहलाता है। आदि हीरे के रंग भेद हैं।
क्षत्रिय के लिये कमलपति गुलाबी हीरा, वैश्य के लिये पीला वनस्पति हीरा, ब्राह्मणों के लिये सफेद हंसपति हीरा और शुद्र के लिये काला तोतिया और नीला हीरा शुभप्रद होता है।
हीरे के लाभ-सुन्दर घाट और अच्छे रंग का चिकना, कठोर हीरा लेकर सूर्य के सामने करने से उसमें इन्द्रधनुष के समान छाया पड़ती है। घी, जल, गरम दूध आदि में सच्चा हीरा डालें तो वह तुरन्त ठण्डा हो जायेगा। ऐसा उत्तम हीरा राजतुल्य माना गया है। सोने चाँदी के जेवर बनवाकर उसमें
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