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________________ * रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान * किस्म के काँच का प्रयोग होता था। नकली रत्न बनाने के लिये गहरे और मोटे काँच का प्रयोग, जिनका उच्च परावर्तनांक होता था, इस्तेमाल किया गया था। इस प्रकार नकली रत्नों के रंग रूप भी बिल्कुल असली रत्नों के समान लगते हैं। परन्तु इन रत्नों का भौतिक वर्तनांक विशेषकर कठोरता और चमक असली रत्नों की अपेक्षा कम होती थी। इसी कारण आज के वैज्ञानिक युग में असली रत्नों जैसा कोई भी नकली रन नहीं बना पाते हैं। जिनकी कठोरता, गुरुत्व और परावर्तनांक असली रन जैसा हो। परन्तु १९वीं शताब्दी के अन्त में एक फ्रांसिसी केमिस्ट ने काफी समय तक नकली माणिक्यों का व्यापार किया तथा एक अन्य फ्रांसिसी उत्पादक ने ओपल की नकल सफलता से तैयार की। ओपल रत्न की विशेषता इसकी रंग-चमक से है। जिसकी नकल करना बहुत कठिन है। हीरे की नकल तैयार करने के लिये जिरकॉन का उपयोग किया जाता है। गढ़े हुए रत्न रत्नों के व्यापार में सबसे चौंकाने वाली बात है कि जब दो या तीन प्रकार के रत्नों को आपस में चिपकाकर गढ़ दिया जाता है। इसे फैब्रिकेशन कहते हैं। उदाहरणतः ऊपरी सतह और निचली सतह के बीच में कुछ ऐसे काँच के टुकड़े परत बनाकर मिला दिये जाते हैं कि एक रंगहीन रत्न भी रंगीन चमक बिखेरने लगता है। कभी-कभी किसी कठोर पत्थर की ऊपरी सतह पर मूल्यवान रत्न का चौखटा जमा दिया जाता है। संश्लिष्ट रत्न संश्लिष्ट रत्न प्राकृतिक रूप से नहीं बनते। इन्हें प्रयोगशालाओं और कारखानों में बनाया जाता है। इसकी रासायनिक संरचना प्राकृतिक रत्नों के अनुसार ही होती है। संश्लिष्ट रत्नों की प्रथम उत्पत्ति सन् १८३० में हुई थी। आभूषणों में जड़ने के लिये छोटे-छोटे संश्लिष्ट रत्न बनाने की परम्परा उसी समय शुरू हुई। १९वीं शताब्दी में वस्नील नामक वैज्ञानिक ने किफायती ढंग से संश्लिष्ट रत्न बनाने की प्रक्रिया खोज निकाली। असली रत्नों जैसे भौतिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001749
Book TitleRatna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapil Mohan
PublisherRandhir Prakashan Haridwar
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Astrology, & Occult
File Size10 MB
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