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________________ नम्र सूचन इस ग्रन्थ के अभ्यास का कार्य पूर्ण होते ही नियत समयावधि में शीघ्र वापस करने की कृपा करें. जिससे अन्य वाचकगण इसका उपयोग कर सकें. रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान रत्नों का मनुष्य के जीवन से बहुत गहरा सम्बन्ध है। मनुष्य सदा से ही तेज गति से उन्नति की ओर जाना चाहता है। साथ ही वह छोटी-बड़ी विपत्तियों से बचते हुए भविष्य में घटित होनेवाली बातों के विषय में भी जानने की इच्छा करता है और यह सब रत्नों द्वारा सम्भव है। लेकिन बाजार में ढेरों पुस्तकें उपलब्ध होने के बावजूद भी सामान्य पाठक-जिज्ञासु निराश रहता है कि उसे संक्षिप्त रूप से रत्न-उपरत्न या उसके पहनने योग्य नग-नगीनों की एक सम्पूर्ण जानकारी सहज में नहीं मिल जाती। रत्नसम्राट पं. कपिल मोहन जी इस विषय के जाने-माने विशेषज्ञ हैं जिनके निर्देश में रत्नों के पहनने से सदैव ही जनता ने लाभ उठाया है। इन्होंने अपने अर्जित ज्ञान को इस पुस्तक में बहुत ही सरल ढंग से बताकर इस ज्ञान की ओर अग्रसर पाठकों पर उपकार किया है। -प्रकाशक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001749
Book TitleRatna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapil Mohan
PublisherRandhir Prakashan Haridwar
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Astrology, & Occult
File Size10 MB
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