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* रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★
१९१ ज्योतिषीय विचार-बाल्यारिष्टी योग में प्रायः यह रोग होता है। चन्द्र-मंगल का संयोग तथा सूर्य की दूषित अवस्था होने पर यह रोग उग्र रूप में हो सकता है।
यह रोग प्रायः बच्चों को ही होता है और उन्हें रत्न पहनाना व्यावहारिक नहीं है, अतः उनके हाथ में ताँबे का कड़ा पहना दें। गले में लाल कपड़ा या लाल मूंगा भी पहनाया जा सकता है।
मस्तिष्क विकार मस्तिष्क विकार में मस्तिष्क की कार्यक्षमता अस्थायी रूप से पंगु हो जाती है, याददाश्त और एकाग्रता भी इसके प्रभाव में आ जाती है। कुछ समय तक रोगी विक्षिप्त सा रहता है क्योंकि यह रोग अत्यधिक चिन्ता, स्नायु विकार, मानसिक आघात, ट्यूमर तथा नशीले पदार्थ व मादक पदार्थ का लगातार सेवन करना इत्यादि मस्तिष्क विकारों के कारणों से होता है।
ज्योतिषीय विचार-चन्द्रमा, बुध तथा शनि मस्तिष्क का संचालन करते हैं। लग्न से तीसरा तथा नौवाँ भाव भी मस्तिष्क को प्रभावित करता है। मिथुन, कुम्भ और कन्या राशियों का प्रभाव भी मस्तिष्क पर होता है, इन ग्रहों के पीड़ित होने पर तथा चन्द्र के साथ शनि या राहु की दशा स्थिति होने पर मानसिक विकार होने का योग बनता है। मूनस्टोन, पीला पुखराज तथा पन्ना धारण करने से मानसिक शान्ति मिलती है। लाल मूंगा सहायक रत्न के रूप में लाभदायक है।
प्रमस्तिष्कीय रक्तस्राव इस रोग में मस्तिष्क को क्षति पहुँचती है और शरीर पर उसका नियन्त्रण नहीं रहता है। मस्तिष्क को मिलने वाले रक्त में रुकावट होने के फलस्वरूप यह रोग होता है। अधिकांशतः यह रोग ६० वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्तियों को होता है। शरीर के किसी भी अंग में पक्षाघात (लकवा) हो सकता है। चक्कर, मूर्छा तथा कमजोरी होना इस रोग के लक्षण हैं। प्रमस्तिष्कीय रक्तस्राव के रोगी का तत्काल उपचार कराना अति आवश्यक होता है,
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