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________________ १३६ * रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★ पीठ पर से सपाट और शेष बिना पहल के सादा रहने देना है। दुहरा उत्तल कैबोकोन (Double Convex Cabochon)-इसमें नीचे व ऊपर दोनों ओर की सतह घुमावदार (Curved) और उन्नतोदर (Convex) होती है परन्तु दोनों के कोणों में भिन्नता होती है। इसमें एक सतह दूसरी की तुलना में अधिक गोलाई लिए हुए होती है। कुछ स्टार स्टोन्ज तथा मूनस्टोन्ज में ऊपरी सतह ढालू (Steep) होती है। क्राइसोबेरिल लहसुनिया भी इसी तराश में तराशे जाते हैं, परन्तु इनकी निचली सतह घुमावदार नहीं होती। सरल कैबोकोन तराश (Simple Cabochon Cut)- इसमें ऊपरी सतह घूमी हुई और निचली सतह चिकनी या सपाट होती है। बहुत-से अपारदर्शक रत्न जैसे-फिरोजा, स्फटिक, लहसुनिया और कभी-कभी अल्मेन्डाइन (AImandine) इसी तराश में तराशे जाते हैं। अवतल-उत्तल कैबोकोन तराश (Concave-convex Cabochon Cut)- इसमें निचली सतह अवतल (Concave) तथा मेखला (Girdle) पतली होती है। यह तराश प्रायः गहरे रंगों के पत्थरों के लिए ही आरक्षित है जैसे-गहरे रंग के कारबंकल (Carbuncle, AImandine Garnet) जो कि बहुत ही गहरे रंग के होते हैं । खोखली कैबोकोन तराश में शिखर उन्नतोदर तथा निचला भाग नतोदर (Concave) होता है। सिंगल तराश (Single cut)-इसमें १७ फलक होते हैं। एक टेबल (शिखर), ८ ऊपरी फलक (Top Facets), ८ निचले फलक (Bottom Facets) यह तराश छोटे आकार के रत्नों में प्रयोग की जाती है। डबल तराश (Double Cut)-इसमें ५८ फलक होते हैं । ३३ ऊपरी फलक (Crown Facets) तथा २५ निचले फलक। यह तराश बड़े हीरों में प्रयोग की जाती है। गुलाब तराश (Rose Cut)-यह तराश अब केवल छोटे हीरों में ही प्रयोग की जाती है तथा फिर रंगीन रत्नों या छोटे रत्नों को यदि बड़े रत्नों के साथ लगाना हो तो उसके लिए भी प्रयोग की जाती है। इस तराश का आविष्कार सन् १६०० में हुआ था। यह निम्न प्रकार की होती है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001749
Book TitleRatna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapil Mohan
PublisherRandhir Prakashan Haridwar
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Astrology, & Occult
File Size10 MB
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