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उपमिति भव-प्रपंच कथा
है । वितर्क ने स्वयं अपनी आँखों से निरन्तर छः वर्ष तक इसका अनुभव करके मुझे बतलाया है । सिद्धान्त गुरु द्वारा कही हुई बात गलत भी कैसे हो सकती है ? [ ६४७-६५० ]
वितर्क के वर्णनानुसार निकृष्ट और अधम को यह राज्य दुःख का कारण हुआ ; क्योंकि उन्होंने राज्य का दुष्पालन किया और वे उस राज्य को पहचान भी नहीं सके । विमध्यम को अल्पसुख का कारण हुआ; क्योंकि वह प्रायः बाह्य प्रदेश में ही रहा और राज्य - पालन बहुत मंद गति से किया । मध्यम को यह राज्य * लम्बे समय तक सुख का कारण हुआ, क्योंकि उसने राज्य के अन्दर प्रवेश कर किंचित् आदरपूर्वक उसका पालन किया । उत्तम राजा और वरिष्ठ राजा को वही राज्य समस्त प्रकार के सुखों का कारण हुआ, क्योंकि उन्होंने उसका बहुत ही उत्तम पद्धति से पालन किया था । मैंने तो इन छहों के एक-एक वर्ष के राज्य- पालन से सारी परिस्थिति को समझ लिया है । मनीषियों ने कहा है- 'जिस मनुष्य ने सूक्ष्म अवलोकन द्वारा एक वर्ष देखा हो और इच्छानुसार उसको भोगा हो तो समझना चाहिये कि उसने सारी दुनिया को देख लिया है ।' कारण यह है कि संसार के भाव घूम-घूम कर, बदल-बदल कर, भिन्न-भिन्न सम्बन्धों में इसी प्रकार घटित होते रहते हैं । सिद्धान्त महात्मा की कृपा से सुख-दुःख के हेतु क्या हैं ? वे कहाँ रहते हैं और प्राणी पर किस प्रकार घटित होते हैं ? यह मेरी समझ में आ जाने से मेरी अप्रबुद्धता नष्ट हो गई, अब मैं प्रबुद्ध हो गया । [ ६५१-६५७ ]
इन राज्यों का विचार बार-बार करते हुए भूपति प्रबुद्ध की अन्तरात्मा को अत्यन्त आनन्द हुग्रा, संतोष हुआ । उस पर पर्यालोचन करते हुए तथा पृथक्करण करते हुए निश्चिन्त हुआ और अत्यन्त हर्षित होकर, निरातुर होकर अपूर्व शांति को प्राप्त किया । [ ६५८ ]
कथा का रहस्य
उत्तमसूरि हरि राजा को उपदेश देते हुए आगे कहते हैं - हरिराज ! प्रसंगानुसार तुझे उपरोक्त वार्ता कही । अब इस पर से तुझे इसका रहस्य समझना चाहिए । निष्कर्ष / रहस्य बतलाता हूँ
जिस प्रकार महामोहादि शत्रु और दृष्टिदेवी निकृष्ट और प्रधम राजा के लिए भयंकर दोष और त्रास का कारण बने और उन्हें महा अधम गति में पहुंचाया उसी प्रकार परमार्थ ज्ञानरहित प्राणियों को अन्य अन्तरंग शत्रु त्रास देते हैं और उन्हें अवर्णनीय नीच स्थिति में डाल देते हैं । पुनः 'रखड़ता हुआ धनशेखर भी अपने पापी अन्तरंग मित्रों के कारण पीड़ित हो रहा है, सुनकर इस विषय में तूने प्रश्न किया था कि क्या प्रारणी दूसरों के दोषों से भी पीड़ित हो सकता है और तद्नुसार
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