SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 947
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपमिति-भव-प्रपंच कथा भोगने के लिए समुद्र के ऊपर आ गया। 'मैं डूब गया हूँ या मर गया हूँ' यह सोचकर देव वापस चला गया। उस समय पवन अनुकूल होने से हरिकुमार दोनों जहाजों को लेकर भारतवर्ष के समुद्र तट पर पहुँच गया । [२८४-२८६] हरिकुमार को राज्य-प्राप्ति समुद्र तट पर उतरते ही हरिकुमार ने लोगों के मुख से सुना कि, 'उसके पिता आनन्दनगर के राजा केसरी मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं।' समाचार सुनकर शीघ्र ही हरि अपने राज्य की तरफ गया और बिना किसी क्लेश या लड़ाई के पैतृक राज्यगद्दी पर स्वयं बैठ गया। [२८७-२८८] कुमार की धाय माता वसुमती ने उस समय कमलसुन्दरी की सब घटना विस्तार से बतलाकर समस्त पारिवारिक बान्धवजनों और राज्यपुरुषों के समक्ष यह सिद्ध कर दिया कि हरिकुमार केसरी राजा का पुत्र ही है । कमलसुन्दरी का पुत्र की रक्षा हेतु भागने से लेकर आज तक का सारा घटनाचक्र सुनकर सब लोग कुमार के प्रति अत्यधिक आकर्षित हुए और राज्य का वास्तविक अधिकारी उन्हें मिला है यह जानकर सारी प्रजा ने संतोष प्राप्त किया। इस प्रकार हरिकमार अपने प्रबल पूण्य के प्रताप से राजा बना और अन्त में विशाल भूमण्डल का अधिपति बना । कुमार ने अपनी सज्जनतावश मेरे पिता हरिशेखर को बुलाकर रत्नों से भरा हुआ मेरा जहाज उन्हें सौंप दिया। ८. धनशखर की निष्फलता धनशेखर की दुर्दशा देव ने मुझे समुद्र तल में फेंक दिया था। जब मैं ऊपर आया तो पर्वत जैसी विकट ऊंची-ऊंची खारे पानी की लहरें मुझे थपेड़े मार रही थी, बड़े-बड़े मगरमच्छ मुझ पर अपनी पूंछों से प्राघात कर रहे थे, अनेक तन्तु जैसे जलजन्तुओं द्वारा मैं बांधा जा रहा था, सफेद शंखों के समूहों में पछाड़ा जा रहा था, परवाल (समुद्री घास) के सघन वनों में गुम हो रहा था, अनेक प्रकार के मगरमच्छों, जल मनुष्यों, सों और नक्रों (शार्को) द्वारा भयभीत किया जा रहा था। कछूमों की कठोर पीठ के कांटों से लहुलुहान, गले तक प्राण आ गये हों ऐसी मृतप्रायः स्थिति में सात दिन और सात रात्रि तक उस महासमुद्र में अनेक प्रकार के दुःख उठाते हुए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy