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उपमिति-भव प्रपंच कथा
दोनों में से एक भी वस्तु प्राप्त नहीं हो सकती, अत: इन दोनों को प्राप्त करने का एक ही उपाय है कि मैं किसी भी प्रकार कुमार को अपने मध्य में से समाप्त कर दू, इस कांटे को निकाल दूं। इस प्रकार सागर और मैथुन मित्रों के वशीभूत होकर इन विचारों के परिणामस्वरूप पाप-परिपूर्ण होकर मैंने अपने मन में निश्चय किया कि किसी को भी संशय न हो इस प्रकार युक्तिपूर्वक कुमार का मैं वध कर दू ।
[२६२-२६३] मैंने जब उपरोक्त निर्णय लिया तब यह नहीं सोचा कि कुमार मेरे प्रति कितना अगाध प्रेम रखता है। मैंने न उसकी स्नेह रसिकता का विचार किया, न मित्रद्रोह के महापाप को सोचा और न कुल में लगने वाले राज्यद्रोह के बड़े भारी कलंक का ही विचार किया। मैं दीर्घकालीन उसकी मित्रता को भूल गया, उसके शुद्ध व्यवहार को भी भूल गया, अथवा उसके विशुद्ध जीवन को भी भूल गया । उसने मुझे अनेक बार सन्मानित किया था उसे भी मैंने ताक पर रख दिया और सच्चे पुरुषार्थ का नाश कर न्याय के मार्ग से भटकने का मैंने निर्णय ले लिया।
अन्यदा मैं दुष्कर्म प्रेरित होने के कारण रात्रि में उठा और कुमार को जहाज के किनारे पर ले गया तथा उसे वहाँ लघु-शंका करने को प्रेरित किया। वह सोच ही रहा था कि मैं उसे ऐसा क्यों कह रहा हूँ तब तक तो वह मेरे धक्के को सहन न कर, एक हृदयभेदी चीत्कार के साथ समुद्र में गिर पड़ा। [२६६-२६७]
समुद्र देव द्वारा रक्षण
__ चीत्कार के साथ जहाज में से कुछ समुद्र में गिरने के छपाके की आवाज सुनते ही लोग जाग गये और चारों तरफ कोलाहल होने लगा। मयूरमंजरी को बहुत भय लगा और मैं तो मूर्ख जैसा शून्य मनस्क होकर वहाँ का वहाँ खड़ा रह गया । मेरे ऐसे अति भयंकर पाप कर्म को देखकर समुद्र का अधिपति देव मुझ पर अत्यन्त क्रोधित हुआ । कुन्द के फूल अथवा चन्द्रमा जैसे कुमार के निर्मल गुणों से वह उस पर बहुत प्रसन्न था अतः तुरन्त ही महाभयंकर प्राकृति धारण कर धमाधम करता हुआ जहाज के निकट आया। उस देव ने सब से पहले उसी क्षण अत्यन्त आदरपूर्वक हरिकुमार को समुद्र के जल में से निकाल कर जहाज पर रखा ।
[२६८-२७१] हे अगहीतसंकेता ! तुझे याद होगा कि मेरे जन्म से ही मेरा अन्तरंग मित्र पुण्योदय मेरे साथ था और उसका सहयोग मुझे सर्वदा मिलता रहता था। उसका मेरे प्रति अभी भी प्रेम था । यद्यपि कुछ समय से वह क्षीण होता जा रहा था, पर मेरे इस अत्यन्त अधम कृत्य को देखकर तो वह मुझ पर बहुत ही क्रोधित हुआ और वह सदा के लिए मुझे छोड़कर मेरे से दूर चला गया। [२७२]
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