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प्रस्ताव ५ : मित्र मिलन : सूरि-संकेत
के समान सूर्य भी सदनुष्ठानों का हेतु बनता है, अर्थात् दिन में लोगों से प्रशस्त कार्य करवाता है और समग्र सम्पत्तियों को प्राप्त करवाता है । अत: हे लोगों ! उठो जागो और सद्धर्म का आदर करो, जिससे तुम्हें अकित और अकल्पित विभूतियां (समृद्धियां) प्राप्त होंगी। [७६-७८]
रत्नचूड का राज्याभिषेक
__कालनिवेदक के शब्द सुनकर मैंने मन में सोचा कि, अहा ! भगवद्भाषित सद्धर्म की महिमा कितनी प्रभावशाली है कि जिन विद्याओं का कभी मुझे स्वप्न में भी ध्यान नहीं था वे स्वयं ही मुझे सिद्ध हो गईं। परन्तु, मझे हर्षित होकर इसी में अनुरक्त नहीं होना चाहिये । वास्तव में तो यह मेरे लिये विध्न ही उपस्थित हुआ है, क्योंकि अब मैं अपने मित्र विमल के साथ दीक्षा नहीं ले सकूगा। कारण यह है कि पुण्यानुबन्धी पुण्य को भी भगवान् ने तो सोने की बेड़ी ही कहा है। सिद्धपुत्र चन्दन ने तो मुझे पहले ही बता दिया था कि मैं विद्याधरों का चक्रवर्ती बनूगा और विमल ने मेरे शारीरिक लक्षणों को देखकर इसी बात का समर्थन किया था । तब क्या किया जा सकता है ? जो होना होगा वह तो होगा ही ! मैं ऐसा सोच ही रहा था कि विद्या देवियाँ मेरे शरीर में प्रविष्ट हो गईं और विद्याधरों ने मेरा राज्याभिषेक प्रारम्भ कर दिया । अनेक प्रकार के कौतुक रचे गये, अनेक मंगल किये गये, पवित्र तीर्थों से जल मंगवाया गया, चौदह रत्न प्रकट हुए और सोने तथा रत्नों के कलश तैयार करवाये गये । यों अत्यन्त आनन्द और महोत्सव पूर्वक मेरा राज्याभिषेक किया गया।
बुधाचार्य का गुप्त संदेश
बन्धु विमल ! उसके पश्चात् देव-पूजा, गुरु और बड़े लोगों का सन्मान, राजनीति की स्थापना, प्रधानवर्ग और सेवकों का नियोजन, अधीनस्थ राज्यों की यथोचित भेंट और प्रणाम स्वीकार तथा अभिनव राज्यों की उचित व्यवस्था आदि कार्यों में मेरे कितने ही दिन व्यतीत हो गये । इन कार्यों से निवृत्त होते ही मुझे आपका आदेश स्मरण में आया और मैं सोचने लगा कि, अरे ! आपने मुझे बुधाचार्य का पता लगाकर उन्हें आपके पास लाने को कहा था, किन्तु मैं कितना प्रमादी हूँ कि अभी तक मैंने न महात्मा का पता ही लगाया और न उन्हें विमल के समीप ही ले जा सका । अतएव फिर महात्मा का पता लगाने मैं स्वयं ही अनेक देश-देशान्तरों में घूमा। अन्त में एक नगर में मुझे प्राचार्य बुध के दर्शन हुए। मैंने उन्हें आपके बन्धुजनों को प्रतिबोधित करने की प्रार्थना की। उन्होंने कहा -- तुम यहाँ से जाग्रो और मेरा गुप्त संदेश विमल को दे दो। मैं कुछ समय पश्चात् आऊंगा। विमल के सम्बन्धियों को प्रतिबोधित करने का एकमात्र यही उपाय है ।
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