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प्रस्ताव : ५ सज्जनता और दुर्जनता
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अन्यथा विमल अवश्य ही यह रत्न वापिस ले लेगा। जब तक मैं इस नगर में रहूँगा, वह मुझे छोड़ेगा नहीं, अत: मुझे यह नगर छोड़कर पलायन ही कर देना चाहिये।' ऐसा विचार कर में तेजी से भागा। घर पर भी नहीं गया, सीधा नगर के बाहर चला पाया । दौड़ते-दौड़ते मैंने अधिक प्रदेश पार कर लिया। तीन रात और तीन दिन लगातार दौड़ कर मैं २८ योजन (३४० कि० मी० लगभग) दूर पहुँच गया। फिर मैंने अपनी अण्टी में से रत्न वाला कपड़ा निकाला और उसकी गांठ खोली । हाथ में लेकर देखता हूँ तो रत्न के स्थान पर पत्थर ! पत्थर को देखते ही हाय ! मर गया' कहता हुआ मैं मूच्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा । बड़ी कठिनता से मुझे चेतना आई तो पश्चात्ताप करने लगा और जोर-जोर से रोने लगा। मैं क्यों वहाँ से भाग कर आया ? नगर भी छोड़ा और रत्न भी गुमाया । जीव ! चल, अब वापिस उस स्थान पर लौट कर रत्न लेकर आ। रोते हुए मैं वापिस अपने नगर की तरफ चला। विमल का सौजन्य
हे अगहीतसंकेता ! इधर मेरे मन्दिर के बाहर से भागने के बाद जब विमल भगवान् के दर्शन कर बाहर निकला तो उसने मुझे वहाँ नहीं देखा, जिससे उसे यह चिन्ता हुई कि वामदेव कहाँ चला गया ? उसने सारे* जंगल में, मेरे घर और पूरे नगर में मेरी खोज करवाई, पर मेरा कहीं पता नहीं लगा। उसने चारों दिशाओं में अपने आदमी मुझे ढूढ़ने के लिए भेजे । उधर जब मैं वापस लौट रहा था तब मेरा पता लगाने घूम रहे विमल के कुछ आदमी मुझे दिखाई दिये जिन्हें देखते ही मैं भयभीत हो गया । वे मेरे पास आये और कहने लगे-'वामदेव ! तुम्हारे वियोग से कुमार घबरा गये हैं, प्रतिक्षण शोक-मग्न रहते हैं, तुम्हें ढूढ़कर लाने के लिए हमें भेजा है । उनकी बात सुनकर मैंने मन ही मन कहा-'चलो, अच्छा हुआ। लगता है विमल ने मुझे रत्न निकालते नहीं देखा' इस विचार से मेरे मन का भय दूर हो गया। विमल के पुरुष मुझे लेकर विमल के पास आये। मुझे देखते ही विमल अत्यन्त स्नेहपूर्वक मुझसे गले मिला। हम दोनों की आँखों में आंसू थे, पर मेरे प्रांसू कपट के थे और विमल के प्रांसू प्रियजन से मिलन पर हर्ष के थे। वामदेव की अधमता : बनावटी बात
मिलन के बाद विमल ने मुझे अपने प्राधे आसन पर बिठाया और मुझसे पूछा-मित्र वामदेव ! तू मन्दिर के बाहर से क्यों चला गया ? कहाँ गया ? क्या हुआ ? क्या बात हुई ? सब कुछ मुझे बता।
उत्तर में मैंने कहा-मित्र विमल ! सुनो, जब तुम जिनमन्दिर में चले गये तब मैं भी तुम्हारे पीछे-पीछे मन्दिर में पा रहा था कि मैंने अाकाश में से किसी विद्याधरी को भूतल पर आते देखा । वह कैसी थी ? सुनो :
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